लघुकथा

स्वीकार

सविता,अब तुम ही समझाओ निलेश को उसे घर की मान- मर्यादा का कुछ भी ख्याल नहीं है। जब देखो उस सावली- सी लड़की के साथ घूमता रहता है। क्या उसे कोई और लड़की नहीं मिलती यही एक हूर रह गई थी उसके लिए इस दुनिया में। उसे तो छोड़ो उस लड़की के माता-पिता ने भी अपनी लड़की को कितनी छूट दे रखी है। क्या कुंवारी लड़की को इस तरह जगह-जगह भटकने देना चाहिए? इसमें बुराई क्या है,अगर दोनों साथ रहते हैं,साथ पढ़ते हैं। दोनों दोस्त हैं इससे ज्यादा तो मुझे कुछ भी नहीं लगता और रंग रूप का किसी के चरित्र से क्या लेना-देना। रंग तो भगवान का भी सावला था। मैं उसे समझाने की सलाह दे रहा हूं।और तुम भगवान से तुलना का ज्ञान बाँटने लगीं।सविता चुपचाप पति की घटिया मानसिकता पर अफसोस कर रही थी। पर वह कर भी क्या सकती थी,शादी के बाद तो पत्नी अपनी बात तक रखने का अधिकार खो देती है,अपने रिश्ते को बचाने के लिए। मर्द तो अपनी बात को मनवा ही लेता है। वह भी कहाँ विचारों में डुबकी लगाने लगी। वह वर्तमान में लौट आई ।पति अभी भी उसे यही कह रहे थे। तुम निलेश से बात करना,सुन रही हो ना। मैं क्या कह रहा हूँ?निलेश कहाँ जा रहे हो? भाभी जी,मैँ मानवी के घर जा रहा हूँ। वह तुम्हारी अच्छी दोस्त है या इससे भी कुछ अधिक। भाभी वह मुझें बहुत अच्छी लगती है और मैं उससे प्यार करता हूँ।और मानवी क्या वो भी तुमसे? तुम्हारे भाई को यह रिश्ता बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा है। तुम्हें पता है तुम्हारा भाई कितना जिद्दी हैं,निलेश? सविता एक खुशखबरी है,तुम सुनोगी तो खुशी से झूम उठोगी। मैंने नीलेश का रिश्ता पक्का कर दिया है,अपने दोस्त की बेटी से, बड़ी होनहार, सुंदर और सुशील है। और उससे भी बड़ी बात वह इकलौती संतान हैं। कुछ समय बाद सब कुछ अपने निलेश का हो जाएगा। गाड़ी भी देने की जिद कर रहे थे। लड़की तुम देखोगी तो देखती रह जाओगी,बिल्कुल परी जैसी हैं। पर क्या हमें निलेश से इस बारे में एक बार पूछना नहीं चाहिए था ।उससे क्या पूछना, मैं उसका बड़ा भाई हूँ क्या उसका भला- बुरा नहीं जानता? ठीक है,शाम को मैं उसे भी खुशखबरी सुना दूँगा। शाम को घर में महाभारत हो गई, दोनों भाई एक दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं थे।दोनों अपने-अपने तर्क दे रहे थे।निलेश तुम्हें मेरे सम्मान का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है। तुम मेरी इज्जत मिट्टी में मिला कर ही चैन की साँस लोगे।निलेश बुत बना खड़ा था। वह जैसे ही उठकर जाने लगा,तो मैं खुद को रोक नहीं सकी,बैठ जाओ वरना आज के बाद। पति मेरा यह रूप पहली बार देख रहे थे।निलेश प्यार करते हो,मानवी से तो सीना ठोक कर स्वीकार करो। वरना चुपचाप घोड़ी पर चढ़ जाओ। पर एक बात अच्छी तरह सोच लेना। क्या तुम आने वाली लड़की के साथ न्याय कर पाओगे? तुम्हें कोई हक नहीं है,दो-दो जिंदगी खराब करने का।प्यार करने से पहले सोचना था,परिवार के बारे में। जब प्यार करने से पहले किसी के बारे में नहीं सोचा तो अब क्यों? सच्चाई को स्वीकार करो।अपनी खुशी के बारे में सोचो। कल को अपने भाई को दोषी नहीं ठहराना। भाभी मैं मानवी के सिवाय किसी लड़की के बारे में सोच भी नहीं सकता।मैं उसे पूरे मन से अपनी बनाना चाहता हूँ। मैंने उसे स्वीकार कर लिया है। भाई चुपचाप उसके चेहरे को देख रहा था। भाभी,मानवी के प्यार को स्वीकार करने पर प्रसन्न थी।

राकेश कुमार तगाला

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