लघुकथा – पहली मुलाकात
यह उनकी पहली मुलाकात थी! घर पर मिलने मिलाने के झंझट से बचने के लिए दोनों परिवारों ने तय किया की 11:00 बजे दोनों परिवार ताजमहल में मिलेंगे अनामिका को ये प्रस्ताव ठीक लगा क्योंकि घर पर व्यर्थ में पापा के बहुत पैसे खर्च हो जाते थे! सामान्य बातचीत के बाद अनिमेष के पापा ने कहा जाओ बच्चों! तुम दोनों थोड़ा ताजमहल घूम के आओ तब तक हम लोग बातचीत करते हैं..
पिता का इशारा समझ कर अनिमेष उठ खड़ा हुआ,मां ने अनामिका को भी जाने का इशारा किया.. अनामिका उठी और दोनों ताजमहल में अंदर की तरफ चलने लगे तब तक तेज धूप निकल आई थी ताजमहल के संगमरमरी फर्श पर पांव रखते ही अनामिका के नंगे पाँव जलने लगे वह तेजीे से चलती हुई छांव की तरफ लपकी !अनिमेष ने महसूस करते ही तुरंत अपने मोज़े उतारे और उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला- संगमरमर का फर्श धूप में बहुत गर्म हो जाता है लो ये मोज़े पहन लो इससे तुम्हारे पांव नहीं जलेंगे! अनामिका अनिमेष को देखती रह गई और उसी क्षण अपना दिल दे बैठी! जरूर यह बंदा केयरिंग होगा..तभी तो अपनी परवाह किए बगैर मेरे लिए सोच रहा है! जीवन में छोटे-छोटे अनुभव कैसे कभी-कभी बड़े निर्णयों का कारण बन जाते हैं अनामिका अनिमेष की मां से शगुन के रुपए लेती हुई सोच रही थी!
— अंजू अग्रवाल ‘लखनवी’