हास्य व्यंग्य

ऑनलाइन शिक्षा (एक व्यंग)

कोरोना महामारी के चलते आम जनता के जीवन में तूफ़ान आया हुआ है ताली पीटकर थाली पीटकर और फिर टोटल लॉकडाउन करने की कोशिशों के बाद भी यह (कोरोना) ना पलटा बल्कि देश की जनसंख्या की तरह आगे ही बढ़ता जा रहा है। इधर कोरोना बढ़ा, उधर आर्थिक समस्याएं और दोनों की जंग में लॉकडाउन हार गया और शुरू हुआ अनलॉक का दौर !
खैर !शुरू हुआ अनलॉक एक, फिर अनलॉक  दो के बाद ‘बौराई’ सरकार और ‘स्कूल फीस से वंचित’ स्कूल प्रशासन को याद आया की बच्चों की शिक्षा का, भी तो भयानक नुकसान हो रहा है। इसीलिए ऑनलाइन क्लासेज शुरू की जाए ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित (कम से कम शिक्षा के कारण )तो हो जाए ।कोरोना तो आजाद है वह कुछ भी करें ! तो शुरू हुई शिक्षा देने की अति सरल! सुखद !प्रक्रिया! “ऑनलाइन शिक्षा”,
अभिभावक और आम आदमी जो पहले से ही बौरा रहे थे क्योंकि लॉकडाउन के साथ घर में कैद उस बेचारे के दिमाग़ का पलीता पहले ही निकल चुका था ।एक ओर बीबी के आदेशों से, दूसरी ओर टीवी चैनलों के संदेशों से ,और तो और ‘वर्क फ्राम होम’ के चलते बॉस की भी घर के सूकून में , बिना इजाजत इंट्री से, बेचारे एक आम से, आदमी के आम से, छोटे से इकलौते टीवी वाले कमरे में ,बीवी, बॉस और  अपनी असीमित ‘उर्जा’ का प्रर्दशन करते ‘मासूम’ बच्चे ,! इनसे उबर भी ना पाया था, की ‘ऑनलाइन टीचिंग’ के बहाने बच्चों के टीचर भी घर पर पधार गए ।

अब जिन ‘जिद्द मनवाऊ’ बच्चों और ‘अति सजग’ तथा ‘सदैव आशंका ग्रस्त’ माता पिता व ‘भाग्यशाली व स्टेटस वाले’ बच्चों के पास 2g 4G 3G मोबाइल थे या स्मार्टफोन थे उन बच्चों का तो टाइम ,एक के बाद एक लगती कक्षाओं में कंफ्यूज होने लगा। पर जिन बच्चों के पास  स्वंय के मोबाइल नहीं थे उनके माता-पिताओं को कुर्बानी देनी पड़ी और अपने ‘प्यारे’ मोबाइल को अति’ऊर्जावान’ बाल वानरों के सुपुर्द करना पड़ा ज्यादातर कुर्बानी ‘ममता की  देवी ‘और “कुछ ना करने वाली” घर की कर्ता-धर्ता को ही करनी पड़ी पर कुछ ‘स्वतंत्रता प्रेमी’ और बाहरी कामकाज भी संभालने वाली ‘श्रेष्ठ’ नारियों को यह ‘मोबाइल दान’ और ‘करुणा प्रदर्शन’ सही नहीं लगा तो मन मार कर ,अपने सारे “जरूरी जरूरी” दस्तावेज मिटा मिटा कर “अच्छे और महान”  पिताश्री होने का प्रमाण कहीं कहीं पुरूषों को भी देना पड़ा।

यह तो उन लोगों की बात हुई जिनके घर दो मोबाइल थे अब बचे बेचारे वे आम से भी ज्यादा आम लोग,जिन्होने अपने बच्चों को ठीक-ठाक स्कूलों में पढ़ाने का बड़ा ही महंगा और सुखद स्वप्न देखने का साहस किया था उनके घर या तो एक ही स्मार्टफोन था या था एक साधारण सा फोन जो केवल ‘सुरक्षित होने की’ या ‘जरूरी बातों’ की सूचनाएं देने या लेने के ‘आम’ से काम ही आ सकता था!
‘मनोरंजन’करने !,’टाइमपास’करने!,सैल्फी लेने!, और”एक्सीडेंट में घायल हुए, मरते हुए इंसान की, वीडियो रिकॉर्डिंग!”करने का गुण उसमें नहीं होता है !
एक तो कोरोना की आर्थिक मार ऊपर से ऑनलाइन पढ़ाई के लिए स्कूल के प्रशासन और बच्चों का दबाव और साथ  ही ऑनलाइन पढ़ाई ना हो पाने के कारण होनहार बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होने का दबाव ,इस आम आदमी के लिए तो जिंदगी चूसा हुआ आम बन गई। कहां से मोबाइल लाए? ना लाए तो बच्चों को जेंटलमैन कैसे बनाएं? इसी उधेड़बुन में कोरोना से बचता बचाता, सोशल डिस्टेंसिंग बनाता, साबुन से हाथ चमकाता, अपनों से कटा कटा, यह आम आदमी पहुंच जाता है वहां ,जहां किसी परेशानी किसी उलझन किसी दुख को जाने की इजाजत नहीं है! सोमरस पीकर वह समस्याओं से उस दिन के लिए पीछा छुड़ा लेता है अगले दिन फिर चिंता करने लगता है।

अब जिनकी इकलौती संतानें थी, उन्होंने तो किसी तरह जुगाड़ बैठा कर, मांग- जांच कर, एक अदद, स्मार्टफोन अपने बच्चे को दिलवा दिया परंतु जिनके घर तीन या उससे भी ज्यादा होनहार सुशोभित थे, उनके घर आज भी एक एक  कन्फ्यूजिंग क्लास के लिए आपाधापी मची है क्योंकि पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया!तो सभी पढ़ना चाहते हैं।

इधर गांवों के सरकारी स्कूलों को भी याद आया की, ‘पढ़ाते’ तो वह भी हैं !तो ‘समझदार’ सरकार ने गांव के स्कूलों में भी बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देने का आदेश दमा दम जारी कर दिया। अब बेचारे माता पिता के पास आटा के लिए पैसे नहीं वो डाटा के लिए पैसे और स्मार्टफोन कहां से लाएं ?( किसी किसी गांव में तो पूरे गांव में केवल एक या दो स्मार्टफोन ही हैं यदि ग्राम प्रधानों के घरों को छोड़ दिया जाए क्योंकि उनके बच्चे तो गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़ते नहीं!)तो बेचारे शिक्षक महोदय
जिनके पास स्मार्टफोन है या नहीं भी है तो खरीद कर या मांग कर शिक्षा का दान भली-भांति कर रहे हैं। गांव के इकलौते स्मार्टफोनों को कामकाजी माता पिता और ‘सुपर पढ़ाकू’ बच्चों के बीच झूलना पड़ता है । चार चार टीचर एक ही बच्चे को अपने विषय की किताबों का सारा ज्ञान दान करने का पुण्य लाभ ले लेना चाहते हैं !बेचारे बच्चे और स्मार्टफोन ओवरलोड हो रहे हैं! बहुत सा  डाटा उन्हें डिलीट करना पड़ रहा है !
ये ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चे अब जाकर  समझे” संतोषी परम सुखी” क्यों कहा गया! जिनके पास मोबाइल नहीं है ,वही परम सुखी हैं ।
तो इस तरह इंडिया ऑनलाइन पढ़ रहा है और आगे बढ़ रहा है । सरकार खुश है बच्चों की पढ़ाई नहीं रुक रही। स्कूल प्रशासन खुश है फीस लेने काऔचित्य बन गया है, बच्चे नई क्लास और मोबाइल पाकर खुश हैं और  आम आदमी और आम अभिभावक चिंता में है मोबाइल तो जैसे तैसे खरीदा पर हर दिन डाटा डलवाने के लिए कहां कतर व्योत  करनी पड़ेगी?

— सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश