गीत/नवगीत

गीत – हिन्दी के लिए”

भारत माँ के भाल की बिन्दी,
हिन्दी की पहचान रे!
बिन हिन्दी के सूना लागे,
मेरा हिन्दुस्तान रे, मेरा हिन्दुस्तान।

सूर-मीरा-रसखान का कान्हा,
नैन नीर बहाता,
कैसे कर जशोदा के धरता,
कैसे माखन खाता?
पुनीत संस्कृति बिन तुलसी के,
झुलस-झुलस रह जाती,
जनकसुता जब अपने मुख से
राम का नाम बताती,
हिन्दी में. रहमान का अल्लाह,
हिन्दू का भगवान रे!
बिन हिन्दी के सूना लागे…

मंदिर-मसजिद के रखवालो,
मस्त कबीरा गाए,
इन दोउन आखिन के अंधे,
अब तक राह ना पाए,
ढाई आखर प्रेम का देखो,
हौले-हौले बोले,
श्यामा का घूंघट पट जब भी,
किशन-कन्हाई खोले,
हिन्दी में है प्रीत की बानी,
प्रीत हिन्दी की जान रे,
बिन हिन्दी के सूना लागे…

खंड-खंड-खंडित भारत में,
फिर ये अलख जगाना होगा,
हर गलियारे में प्रसाद-
नानक की बानी लाना होगा,
लाना होगा प्रेमचंद के
शब्दों के संसार को,
बापू के सपनों का भारत,
और पंत के प्यार को,
चलेगा आज हम माता को,
रूसवा होने से बचाएँगे
भारत माँ के भाल पे,
हिन्दी का सिन्दूर लगाएँगे,
चलो,चले हम आज करेंगे,
जग-जन का उत्थान रे,
बिन हिन्दी के सूना लागे…

— शरद सुनेरी