कविता

बेशर्म आदमी

बेशर्म आदमी! हो तुम,आज यह भी दुनिया ने बोल दिया,

ऐतबार था जिन पर मुझे उन्होने भी राज अपना खोल दिया।
नज़ाकत से कहते है कि सबकी तरह तुम चुप क्यों नही रहते,
निज स्वार्थ मे सबकी तरह मस्त तुम क्यूँ नही रहते?
सच्चाई का आईना तुम सबको क्यों दिखाते हो?
जानते हो? इसलिये तुम पीठ पीछे बहुत कोसे जाते हो।
छोड़ दो जिन्दगी की सच्चाई और यह वसूलो पर चलना,
खाली हाथ रह जाओगे तुम्हे कुछ भी न है फिर मिलना।
सुनता रहा,सहता रहता और अन्त मे सबसे यह कह उठा,
राजा हो या रंक अन्त मे यह भी मिटा और वह भी मिटा।
— अभिषेक शुक्ला

अभिषेक शुक्ला

सीतापुर उत्तर प्रदेश मो.न.7007987300 नवोदित रचनाकार है।आपकी रचनाएँ वास्तविक जीवन से जुडी हुयी है।आपकी रचनाये युवा पाठको को बहुत ही पसंद आती है।रचनाओ को पढ़ने पर पाठक को महसूस होता है कि ये विषयवस्तु उनके ही जीवन से जुडी हुयी है।आपकी रचनाये अमर उजाला, रचनाकार,काव्यसागर तथा कई समाचार पत्रो व पत्रिकाओ मे प्रकाशित हो चुकी है।आपकी कई रचनाये अमेरिका से प्रकाशित विश्व प्रसिद्ध मासिक पत्रिका "सेतु "मे भी प्रकाशित हुई है।