कविता

मैं हार गया

मैं हार गया
आया न सलीका
जीतने का मुझको
जीत के लिए
साम दाम भेद दंड
सभी अपनाए जाते हैं
जमीर मेरा स्वीकार
न कर पाया इसको
और मैं हार गया
सीखा नहीं मैंने
कृष्ण की वाणी से
महाभारत को समझा नहीं
पांडव भी हार जाते
जो कृष्ण की न मानते बात
धर्मराज युधिष्ठिर से भी
जो थे यम के अवतार
सत्य थी उनकी पहचान
असत्य कहलवा दिया
अश्वत्थामा मारा गया परन्तु हाथी
हाथी धीरे से उनसे बुलवा दिया
उनके हाथी बोलने से पहले ही
पांचजन्य अपना बजा दिया
सुनते ही अधूरा सत्य
द्रोण ने हथियार अपने रख दिए
रखते ही द्रोण के हथियार
वध उनका करवा दिया
यह थी कूटनिति
जो बनी जीत में निर्णायक
जब बात हो न्याय- अन्याय की
हर हथियार इस्तेमाल करना चाहिए
नीति और अनीति का
विचार त्याग देना चाहिए

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020