गीतिका/ग़ज़ल

जश्न-ए-मसर्रत

जश्न-ए-मसर्रत औ’ आँखों में नमी है।
तेरी कमी आखिर तेरी ही कमी है।।

मुस्कुराहट है लेकिन ज़रा फीकी।
इतना होना तो लाज़िमी भी है।।

दुनिया की निगाहों से दूर यूँ मिलें।
आकाश से मिलती जैसे ज़मीं है।।

वादे काँच रिश्ते साँसों की डोर भी।
टूटने को ही हर चीज़ बनी है।।

यादों के शहर में हम तेरे आ गए।
न कोई दर्द अब न कोई गमी है।।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा