कविता

झोंका

तिनका-तिनका जोड़ के घोसला बनता है
बड़ी लगन परिश्रम से परिवार सजता है
एक तेज हवा का झोंका
सब पलभर में उड़ा ले जाता है

वक़्त के आगे सब खिलौना ही तो है
एक पल का भी कहां खबर किसी को

खुशियां बेहिसाब या कि
काल का दस्तक दबे पांव

वक़्त भी न बड़ी बेरहम हो जाती है
पहाड़ सी जिंदगी….
साथी साथ छोड़ जाता है
अपने दूर बहुत दूर चले जाते हैं

एक झोंका हवा का
भूचाल सा चला आता है
पलभर में ही सब बहा ले जाती है

पीछे छोड़ जाती है पहाड़ सी जिंदगी
जिम्मेदारी, यादों के गुलदस्ते
के सहारे के सिवा होता ही क्या है
मन विचलित होने लगता है
विरक्ति का भाव पनपने लगता है
सब बेमायने से लगता हैं

काल यूं दबे पांव चला आता है
कुछ समझने से पहले ही
किसी अपने को हमसे दूर ले जाता है

दुःख के सागर में तन्हा कर जाता है
मन को समझाने के सिवा चारा ही क्या है
वक़्त के हाथों की कठपुतली ही तो हैं हमसब

सारी शक्ति, नाम एक ही झटके में शून्य नजर आता है
आंखें नम, दिल भर आता है
सांत्वना देने, हिम्मत बढ़ाने
दोस्त रिश्तेदार जानकार
चले आते हैं

सब वक़्त का खेल है
वक़्त का दिया जख़्म
समय के धागे से सिला जाता है

जीवन भर का गम
वक़्त ही भर पाता है
धीरे धीरे अपनो से बिछड़ के
जीना आ ही जाता है

वक़्त सब सीखा जाता है
बरसो में जो संजोई थी खुशियां
एक पल में सब उड़ा ले जाता है

मुश्किल घड़ी में अकेला छोड़ जाता है
काश..कि कुछ ऐसा हो जाता
हर मुश्किल का हल मिल जाता
मुसीबतों से लड़ने का हौसला मिल जाता

आने वाले तूफ़ां का पता लग जाता
मूंद कर आंखें, किसी कोने में
छिपने की आदत बना लेते
तन्हाई में जरा आंसू बहा लेते
खुद ही गम के समंदर में
लगा के गोते
गहराई का पता लगा लेते

अचानक से आई तन्हाई में
जीने की आदत बना लेते।

*बबली सिन्हा

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