मुक्तक/दोहा

कुर्सी

कुर्सी की माया बड़ी , समझो इसका सार
कुर्सी यदि मिलती नहीं तो जीवन धिक्कार
इसीलिए कहता हूँ भैया समझो इसका अर्थ,
कुर्सी गर मिलती नहीं ,समझो जीवन व्यर्थ
समझो जीवन व्यर्थ नहीं कोई है आशा
कुर्सी सबसे श्रेष्ठ यही जीवन अभिलाषा
बिन प्रयास कुछ होत नहीं जीवन में भाई,
नेता बनना अगर तुम्हें फिर करो सगाई
बात पते की कहूँ जरा कान देकर सुनो
कुर्सी से तुम ब्याह रचाओ टोपी पहनो
कुर्सी और टोपी का मैं हो गया कायल,
राजनीति ऐसी चली कुर्सी हो गई घायल
कुर्सी हो गई घायल ,टोपी किसे सुहावे,
तिकड़म में जो श्रेष्ठ वही नेता कहलावे

— राजेश कुमार

राजेश कुमार

सहायक अध्यापक त्यागी इण्टर कॉलेज इस्माइलपुर , प्रयागराज नौवापुर, मझिगवाँ, प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश सम्पर्क सूत्र-8057242930