लघुकथा

काबिल

आप भी कमाल कर रहे हो।
इसमें कमाल की क्या बात है?
समझतें क्यों नहीं,जिस आदमी की जात का पता नहीं, उसे अपनी इकलौती बेटी कहते-कहते वह कुछ गम्भीर हो गई?
आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?
खुल कर कहो।
सब कुछ मैं ही कहूँ।
आप तो कुछ समझते ही नहीं हो।
सारी दुनिया में एक सुरेश ही मिला था,मेरी लाड़ली के लिए।
क्यों,क्या कमी हैं उसमें?
हद करते हो,जिस आदमी का कोई पता ठिकाना नहीं।
माता-पिता का पता नहीं।ये भी नहीं पता,कहाँ से आया हैं?
क्या ये सब पता होना——-?
बस मैंने कह दिया,मैं अपनी बेटी की शादी उस लड़के से नहीं कर सकती।
ठीक हैं।उर्मिला,अखबार पढ़ना जानती हो ना।
हाँ-हाँ,बहुत अच्छी तरह।
ये पढ़ो,ये क्या हैं?
सुरेश यादव,जिसने अपनी मेहनत के बल पर वो मुकाम हासिल किया है,जो सिर्फ लोगों का सपना होता हैं।यह इसलिए भी खास है।सैकड़ो लड़के-लड़कियाँ आई.ए. एस की परीक्षा पास करते हैं।
पर सुरेश ने अपने माता-पिता को बचपन में ही खो दिया था।
वह कुछ साल सड़कों पर भीख माँगता रहा, चाय की दुकान पर काम करता रहा।झुग्गी-झोपड़ी में ही शिक्षा प्राप्त की।उसने किताबों से दोस्ती कर ली।कहते हैं ना जहाँ चाह होती हैं,वहाँ राह निकल आती।आज सुरेश यादव पर सारे देश को गर्व है।क्या तुम्हें अब भी लगता हैं कि वह हमारी बेटी के लिए
काबिल नहीं है?पर उसकी जात,क्या वह यादव हैं?वह भगवान कृष्ण को अपना आदर्श मानता है,इसलिए उसने अपना नाम के साथ यादव रख लिया है।क्या तुम्हें अब भी उसकी काबलियत——-?मुझें माफ कर दो।उससे काबिल लड़का तो हमें मिल ही नहीं सकता।वह अखबार में छपे फ़ोटो पर स्नेह से हाथ फेर रही थी।

राकेश कुमार तगाला

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