लघुकथा

तृप्ति

पंडित जी सुबह से आज बहुत खुश है ।उनके पुराने यजमान के यहां उनके बेटे ने यजमान के श्राद्ध के उपलक्ष में बड़ी पूजा रखी है और उनको बुलाया है। पंडित जी अपने दैनिक क्रिया से निवृत्त हो समय पर पहुंच जाते हैं ।आज के इस कलयुग में पुराना विशाल हवेली जैसा घर जिसके अंदर प्रवेश करते ही बड़ा खुला आंगन जिसमें उनके यजमान पूजा हवन करते थे। अपने परिवार के साथ आज आज वह आंगन उनको सुनसान दिखा कभी ऊपर से उनके बड़े बेटे की आवाज आई पंडित जी ऊपर आ जाइए घर के अंदर पूजन की व्यवस्था है । दूसरी मंजिल से उनके दूसरे बेटे ने उनको आवाज लगाई तभी तीसरी मंजिल से बहू ने कहा पंडित जी ऊपर आ जाइए । सबसे छोटे बेटे ने अपने बेटे को भेज दिया उनको चौथी मंजिल पर ले जाने के लिए। पंडित जी हैरान होकर सब तरफ देख रहे हैं ।
जो खुशी उनके मन में आते समय थी वह काफूर हो गई सोचने लगे । उनके यजमान की आत्मा को ऐसे अलग-अलग जगह हवन करने से श्राद्ध करने से शांति मिलेगी शायद नहीं फिर भी वो बेमन से बड़े बेटे के घर गए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध बड़ा बेटा करता है । ऊपर जाकर उन्होंने देखा चार लोगों का परिवार हवन कराने के लिए बैठा है ।
पंडित जी बैठ गए हवन कराने विधि विधान से पूजा करवा दी अंत में बड़े बेटे से बोले” बेटा क्या तुम्हारी आत्मा मां की आत्मा को आज शांति मिली होगी?
तुम सभी भाइयों को इस तरह अलग-अलग देखकर क्या उसकी आत्मा तृप्त हुई होगी ?
सोचो !! फिर मुझे बताना मैं चलता हूं “।

डॉ सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।