कविता

कोरोना या करमा

नर मे वास करें नारायण
नारी में नारायणी ,हे मानव॥
स्वयंम को समझ
अपने कर्मों को तू बदल॥
चांद ,सूरज, पृथ्वी ,गगन
सब अपने कार्य में है मगन॥
नीति देखो रे मनुष्य की
जो खो गई जाने किस भवन॥
रोज सवेरे स्नान करे वो
तन को रखें स्वच्छ॥
मन का मैल ना धुल पावेगा
चाहे काशी गंगा जावे हर वर्ष॥
तूने जल ना छोडा
जंगल ना छोड़ा॥
पृथ्वी कर बंजर
प्रदूषित किया हर शहर, हर नगर॥
पृथ्वी के टुकड़ों के लिए
तू लडता अवश्य है॥
पर उन्हीं के रक्षकों को
तू सम्मान न दे पाया॥
पक्षियों को पिंजरे में डाला
पशुओं को चिड़ियाघर॥
देख रे मनुष्य तेरे कर्म
आज तू, स्वयंम है कुटिया में बधं॥
गौ माता की पूजा कर
उनको बली चढ़ाई॥
विनायकी हत्या कर
गणेश चतुर्थी भी मनाई॥
अबला कहा जाता है जहां
औरतों को इस देश में॥
काली को भी पूजते हैं
दुर्गा के वेश में॥
बेटी के जन्म पर
जिन्होंने कराया गर्भपात॥
उनीके चिरागों ने दिखाया
वृद्धाश्रम का मार्ग॥
कष्ट उठाकर जिसने जन्म दिया
तुझे उसपर दया ना आई॥
बैसाखी बन सकता था जिसकी
उसकी माया ही बस तुझे भाई॥
जनम मरण सब लिखित आवे
अपने कर्मों से ही बदला जावे॥
जे तू अपना मार्ग खो जावे
काल ही सब याद दिलावे॥
एक दिन पाप का घड़ा भी भर जावे
झलक-झलक फीर फुट जावे॥
हे मानव, स्वयंम को समझ
अपने कर्मों को तू बदल॥

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा