गीतिका/ग़ज़ल

है युग का आदमी

नशे  का  सौदागर, है  युग का आदमी।
छुपा  हुआ अजगर,है युग का आदमी।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, हंकार  पालता,
हुआ बद से बदतर, है युग का आदमी।
नेक   इंसान  से   भी   भरी   है  धरती,
करता इन में बसर, है युग का आदमी।
भक्ति की लहर में डूबा समाज देखिये,
खो देता सब असर है युग का आदमी।
मां, बहन, बेटियाँ  पूजी जाती  हैं  यहाँ,
देखता  बुरी  नज़र, है युग का आदमी।
धन  दौलत  पास  है तृष्णा  न  मिटती,
हुआ  इतना बेसब्र, है युग का आदमी।
भाई का भाई दुश्मन है इतना बन गया,
मारे  दिल में खंज़र,है युग का आदमी।
मां बाप ने है पाला  इतना बड़ा  किया,
न करे उन की कदर,है युग का आदमी।
न खुदा  का है डर  न कानून का है डर,
हुआ बेखौफ निडर, है युग का आदमी।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. Sanyalshivraj@gmail.com M.no. 9418063995