लघुकथा

प्रवाह

”हिंदी दिवस मना लिया?” उसने पूछा.

”अन्य दिवसों की तरह मनाने को तो हिंदी दिवस मना लिया, पर हमारे लिए तो हर रोज हिंदी दिवस होता है.” नम्रता ने नम्रतापूर्वक कहा. ”पर आप कौन हैं? और आप इतनी उदास क्यों हैं?”

”मैं हिंदी हूं, जिसे तुम लोग भारतमाता के मस्तक की बिंदी कहते हो.” हिंदी की कातरता देखते ही बनती थी.

”तुम लोग रुकी हुई घड़ी को बर्दाश्त नहीं करते हो, रुके हुए पानी को पीने से कतराते हो, रुकी हुई अर्थ व्यवस्था को गति देने की बात करते हो, रुकी हुई जीडीपी पर बहस कर प्रवाहित करने की कोशिश करते हो, पर रुके हुए हिंदी के प्रवाह की चिंता की है कभी तुमने!” हिंदी की चिंता मुखर थी.

”कभी-कभार हिंदी में कुछ लिख लेते हो, उसमें भी वर्तनी की ढेरों त्रुटियां करते हो. ‘में ‘ लिखते समय बिंदी खा जाते हो, ‘मैं’ को भी ढंग से नहीं लिख पाते हो, ‘नहीं’ में अक्सर बिंदी गायब कर जाते हो, ‘कि’ और ‘की’ का अंतर ठीक से नहीं कर पाते हो, अपने बच्चों से भी अंग्रेजी में बात करते हो, ताकि वे कहीं भी अंग्रेजी में मात न खा जाएं.” तनिक रुककर हिंदी ने फिर कहा.

”कहने को तो कहते हो रूस में रूसी भाषा चलती है, फ्रांस में फ्रांसीसी, जापान में जापानी, जर्मनी में जर्मन, चीन में केवल उनकी अपनी मंदारिन, पर अपनी बारी हिंदी के बारे में यह स्वाभिमान कहां चला जाता है? तब तुम्हारे पास एक ही लचर दलील होती है, कि अंग्रेजी के बिना काम नहीं चलता. अरे, तुम हिंदी का प्रयोग करने की दृढ़ता तो दिखाओ, बाकी सब देशों के लोग अपने आप हिंदी सीखने-सिखाने के लिए मजबूर हो जाएंगे!” आज हिंदी अपनी सारी व्यथा मानो उड़ेल देना चाहती थी.

”मेरी समाहार की प्रवृत्ति मेरी प्रमुख विशेषता है, इस बात को भी उजागर करना अत्यंत आवश्यक है. जिस भी भाषा के शब्द मुझमें आते हैं, वे इसमें ऐसे समाहित हो जाते हैं, कि पढ़ने-सुनने वालों को मैं अपनी-सी लगने लगती हूं.” हिंदी भाषा तनिक संयत हो चली थी.

”तुम्हें शायद किसी ने बताया नहीं, कि अंग्रेजों के जमाने में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन आधुनिक भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले पहले भाषा वैज्ञानिक थे.  भारतीय विद्या विशारदों में, विशेषतः भाषा विज्ञान के क्षेत्र में, उनका स्थान अमर है. वे “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया” के प्रणेता के रूप में अमर हैं. ग्रियर्सन को भारतीय संस्कृति और यहाँ के निवासियों के प्रति अगाध प्रेम था. भारतीय भाषा विज्ञान के वे महान उन्नायक थे. नव्य भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से उन्हें बीम्स, भांडारकर और हार्नली के समकक्ष रखा जा सकता है. एक सहृदय व्यक्ति के रूप में भी वे भारतवासियों की श्रद्धा के पात्र बने.” हिंदी की मधुर स्मृतियां ताजा हो उठी थीं.

”ग्रियर्सन ने मुझे प्रवाह दिया. हो सकता है, समय की मांग के अनुसार मुझमें कुछ कमियां रह गई हों, उनको पूरा करने के लिए तुम नवाचार करते, नए नियम-सिद्धांत बनाते, कुछ कोशिश करते. काश, आज तुम लोग भी मेरे अवरुद्ध प्रवाह को प्रवाहित कर मुझे नवजीवन प्रदान कर सकते!” प्रवाह की प्यासी हिंदी इसके आगे क्या बोलती!

हिंदी भाषा के प्रति सतत जागरूक रहने और करने वाली नम्रता ने हिंदी भाषा के प्रवाह को शिद्दत से बनाए रखने के लिए कमर कस ली.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “प्रवाह

  • लीला तिवानी

    हिन्दी जब सहज भाव से बहती,
    हिंदोस्ताँ की संस्कृति संग में चलती।
    सभ्यता संस्कृति की प्रतीक है,
    सरल अभिव्यक्ति की संगीत है।
    एकता का पाठ हमें पढ़ाती है,
    एक सूत्र में राष्ट्र को बांधती है।
    हिन्दी है मृदु भावों का सागर,
    भरी है इसमें अपनत्व की गागर।
    आधुनिक युग के इस दौर में,
    खो रही है हिन्दी, अंग्रेजी शोर में।
    आओ ! सब मिलकर दे सम्मान,
    करें अब निज भाषा का उत्थान।
    जब होंगे हिन्दी के प्रति हम सजग,
    तब राष्ट्रभाषा को मानेगा सारा जग।

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