मुक्तक/दोहा

मुक्तक

हिंदी ही पहचान है, हिंदी ही अभिमान।
कई सहेली बोलियाँ, मिलजुल करती गान।
राग पंथ कितने यहाँ, फिर भी भारत एक-
एक सूत्र मनके कई, हिंदी हुनर महान।।-1

एक वृक्ष है बाग का, डाल डाल फलदार।
एक शब्द है ब्रम्ह का, पढ़ न सका संसार।
पूजा तो सबने किया, लिए हाथ में फूल-
किसी किसी को मिल गया, नीर नाव पतवार।।-2

पात पात से वृक्ष है, और बृक्ष से पात।
दिन रोशन करता डगर, और चाँद से रात।
शब्द समंदर से बड़ा, लेकर समुचित भाव-
कनक कटोरा में भरा, कनक सरीखी बात।।-3

वृक्ष डाल पर मगन है, इक दादुर इक मोर।
दोनों के चित राग रस, कनक ढूढ़ता चोर।
मिल जाये कवि को अगर, कनक सरीखा शब्द-
खिल जाए कवि धर्मिता, भाव भंगिमा शोर।।-4

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ