गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुझे न दौलत की जुस्तजू है न तख्त ओ ताज की आरजू है
फकीर हूं मैं फकीर दिल है यूं फकीरी में साथ चल सकोगे।

के सीखा है हमने मुस्कुराना मुझे न गम ना खुशी की परवाह
मेरी जिंदगी है धूप छाया क्या ऐसे मौसम में ढल सकोगे।

यूं दरबदर हम भटक रहे हैं न जाने मंजिल कहां मिलेगी
गिरे तो मरना ही है मुकर्रर क्या गिरके तुम सम्हल सकोगे।

कहां बदल जाऊं चलते चलते इंसान हूं मेरा क्या भरोसा
सुन मैं बेवफा बेकदर सही तुम वफ़ा के सांचे में ढल सकोगे।

खुदा भी लिख लिखके रोया होगा वो दास्तां है ये जिंदगानी
खिजां ए सहरा नसीब में हैं क्या तुम ये किस्मत बदल सकोगे।

उम्मीद का सूरज ढल गया पर एक लौ जानिब जल रही है
बिखेर सकती हूं रोशनी पर क्या साथ मेरे तुम जल सकोगे

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर