ब्लॉग/परिचर्चा

यादों के झरोखे से- 27

                                                                                ब्लॉग संख्या- 2700

                                                  लीला तिवानी की विजेता लघुकथाएं

1.अंतिम चेतावनी (विजेता लघुकथा)

                                              2 दिसंबर राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस पर विशेष

                  साहित्यिक लघुकथा मंच ‘नया लेखन नए दस्तखत’ पर विजेता लघुकथा

”मैं तो फिर भी युग-युगांतर तक बची रहूंगी, सर्वनाश होगा तो तुम्हारा ही होगा. मानव तुम अभी न संभले तो कभी नहीं संभल पाओगे, अपनी ही लाचारी से विवश और पंगु हो जाओगे.”

”कौन हो तुम?” आवाज सुनकर मानव ने चहुं ओर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया, बस कटकर गिरते पेड़ों के चीत्कार और नष्ट होते हुए पक्षियों के घोंसलों की कराहट का आभास-सा हो रहा था.

”अभी तुम जीवनदाई वृक्षों को काटकर कंकरीट के जंगल बनाने में जुटे हुए हो, संभलोगे कब? आबादी में इजाफा करते जाओ, जरूरतें बढ़ाते जाओ, मकान बड़े करते जाओ, दिल छोटे करते जाओ.” आवाज ने तनिक विराम लिया.

‘या बेईमानी तेरा आसरा’ कहकर ईमानदारी को छोड़ते जाओ, ‘हम तो नहीं सुधरेंगे’ का आश्रय लेकर मनमानी करते जाओ, कल यही कंकरीट के जंगल इतने तप जाएंगे, कि ताप को कम करने में तुम्हारे शीतदायक यंत्र भी लाचार हो जाएंगे.” आवाज शायद खुद लाचार हो गई थी.

”पेड़ों के अभाव में भयंकर प्रदूषण की मार से तुम्हारे वायुशोधक यंत्र भी बेकार हो जाएंगे, तुम ‘एक इंच छाया’ को तरसोगे और अपनी विवेकहीनता के कारण वृक्षों पर रहने वाले खूबसूरत पंछियों को लाश में बदलने वालो, निकट भविष्य में मरघट जैसी शांति में शायद तुम भी जिंदा लाश बन जाओगे, न पानी बचेगा और न पानी पिलाने वाला कोई संवेदनशील.” तृषा के कारण आवाज मानो मौन रहने को विवश हो गई थी.

”एक दूसरे पर छींटाकशी करके जिम्मेदारी से किनारा करके बचने का ढोंग करने वालो, तब विध्वंस तांडव नृत्य करेगा और तुम पर अट्टहास करके हंसेगा—हाहाहाहा…..”

”सृष्टि ने विध्वंस की यह अंतिम चेतावनी दी थी.” मानव ने समझ लिया था.

यह लघुकथा ”नया लेखन नया दस्तखत” लघुकथा मंच पर साप्ताहिक लघुकथा प्रतियोगिता में विजेता लघुकथा घोषित की गई थी. यह प्रतियोगिता हर सप्ताह प्रदत चित्र पर आधारित होती है. इस चित्र में टूटता हुआ पेड़ और चिड़िया का गिरता हुआ घोंसला दिखाया गया था.

२.छतरी वाली लड़की (विजेता लघुकथा)

                                                   5 जून ‘पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर विशेष

                साहित्यिक लघुकथा मंच ‘नया लेखन नए दस्तखत’ पर विजेता लघुकथा

आज एक कला प्रदर्शनी में एक चित्र देखा. चित्र क्या था, बोलते-चालते विकास और प्रदूषण का जीवंत चित्रांकन था! एक तरफ धुआं छोड़ती गाड़ियां, एक तरफ प्रदूषण फैलाती कल-कारखानों की चिमनियां. उस चित्र को देखकर मुझे उस छतरी वाली लड़की की याद आ गई, जो ऑस्ट्रेलिया में लगातार 4 महीने तक मुझे सुबह सैर करते हुए मिलती रही थी. उसी समय पर उसी जगह पर, क्योंकि उसे ठीक नौ बजे काम पर पहुंचना होता था और मुझे ठीक नौ बजे घर, ताकि सबको नाश्ता ठीक समय पर मिल सके.

पिचकी नाक वाली गोरी-चिट्टी-नाटी वह चीनी लड़की कोई भी मौसम हो, छतरी ताने चलती थी. पहले सर्दी का मौसम था. हल्की सुनहरी धूप बहुत सुहानी लगती थी, पर वह यानी डिक्सी छतरी ताने! मुझे आश्चर्य लगा. फिर मैंने सोचा, शायद यह गोरी-चिट्टी होने के कारण रंग काला न पड़ जाए, इस डर से छतरी ताने चलती थी. एक दिन गुड मॉर्निंग के बाद मैंने उससे पूछ ही लिया. उसका जवाब चौंकाने वाला था.

”प्रदूषण.” उसका जवाब था.

”प्रदूषण? मुझे तो यहां कोई प्रदूषण नहीं दिखाई दे रहा!” मेरे मन में तो दिल्ली बसी हुई थी.

”आप पॉश सबर्ब में रहने वाली हैं, जरा आउट स्कर्ट्स में आकर देखिए. कारें तो पूरी सिडनी में हैं ही, चिमनियों का धुआं सांस लेना तक दूभर कर देता है. नीची चिमनियां पॉल्यूशन लेवल को और ऊंचा कर देती हैं.” उसने नाक पर हाथ को ऐसे रख लिया था मानो इस समय भी चिमनियों का धुआं उसकी सांस को प्रदूषित कर रहा हो.

मुझे हैरानी हो रही थी. 20 साल से यहां आती रही हूं, दो-दो साल भी रहकर गई हूं, न मक्खी-मच्छर, न तिलचट्टा-छिपकली. कूड़े के निपटान की सुव्यवस्था. सफाई और अनुशासन ऐसा, कि दंग रह जाओ. उस दिन उसकी बात से दंग रह गई थी.
”इंडस्ट्रियल एरिया में संचालित कल-कारखानों की चिमनियों से उठते धुएं व आसपास बहती केमिकलयुक्त गंदगी भी प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रही है.” उसने कहा था.

”ऐसा क्या!” मेरी हैरानी बढ़ती जा रही थी.

”यहां प्रदूषण दिखाई नहीं देता, पर प्रदूषण के कारण सूर्य की किरणें इतनी प्रदूषित हो गई हैं, कि सर्दी में भी छतरी के बिना धूप में चलने से त्वचा की ऐसी बीमारियां हो जाती हैं, जिनका ठीक होना मुश्किल है. इसलिए बचाव में ही समझदारी है.”

तब से मैं भी छतरी वाली बन गई थी.

इस लघुकथा के चित्र में कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले काले धुंएं का भयावह दृश्य दिखाया गया था. छतरी वाली चीनी लड़की ऑस्ट्रेलिया में रोज सुबह मुझे सैर करते समय मिलती थी, पर उससे कभी बात नहीं हुई थी.

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3. बहकावे की हद (विजेता लघुकथा)

                साहित्यिक लघुकथा मंच ‘नया लेखन नए दस्तखत’ पर विजेता लघुकथा

”ठहरो” बंदूक वाले शख्स ने कहा.

”मैं तो ठहर गया,” तिरंगे झंडे वाले शख्स ने ठहरते हुए कहा. ”महात्मा बुद्ध की तरह पूछ सकता हूं, तुम कब ठहरोगे?”

”तुम अमन हो?” बंदूक वाले शख्स ने उसे ध्यान से देखते कहा.

”हां, मेरा नाम अमन ही है, लेकिन तुम्हें कैसे पता?” तिरंगा लहराते हुए अमन ने कहा.

”रोशनी धुंधली है, इसलिए तुम शायद देख नहीं पा रहे हो, मैं तुम्हारी जैसी शक्ल का हूं. मुझे लोगों ने बताया था, कि हमने अमन को देखा है, हूबहू तुम्हारी शक्लो-सूरत का है.” बंदूक वाले शख्स ने कहा.

”तुम हामिद तो नहीं हो? मैंने भी सुना था. मेरे जुड़वां भाई को कोई उठाकर ले गया था, अब वह हामिद कहलाता है.” अमन कुदरत के करिश्मे पर हैरान था. ”मुझे पता नहीं था, कि हम जंग के मैदान में मिलेंगे.”

”इसे जंग का मैदान मत कहो भाई, यह तो राम-लक्ष्मण की मिलनस्थली है.” हामिद ने कहा, ”तुम तिरंगे को झुकने मत देना, मैं ही शस्त्र को तिलांजलि देता हूं, जाने किस बहकावे में आ गया!” हामिद ने शस्त्र फेंकते हुए बांहें फैलाईं.

बहकावे की हद समाप्त हो चुकी थी.

इस चित्र में दो छोरों पर दो युवा लड़के दिखाए गए थे. एक के हाथ में बंदूक थी, एक के हाथ में भारत का तिरंगा झंडा.

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आप लोगों को यह जानकर अत्यंत आश्चर्य होगा, कि एक समय अपना ब्लॉग पर भी हर सप्ताह विजेता रचनाएं घोषित की जाती थी. उस समय सम्भवतः कौन-सी रचना सबसे अधिक देखी-पढ़ी गई है, इसी पर विजेता ब्लॉग का निर्धारण होता था. हमें अपना एक विजेता ब्लॉग याद है, जो इस प्रकार है-
पल्स पोलियो रविवार
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/%E0%A4%AA%E0%A4%B2-%E0%A4%B8-%E0%A4%AA-%E0%A4%B2-%E0%A4%AF-%E0%A4%B0%E0%A4%B5-%E0%A4%B5-%E0%A4%B0/

ब्लॉग संख्या- 2700

यह तो मात्र एक संयोग है कि आज हमारे 2700 ब्लॉग्स पूरे हुए और ब्लॉग के शीर्षक में भी 27 का अंक आ गया. यहां तक पहुंचने के इस लंबे सफर में आप सब लोगों की सक्रिय भूमिका बहुत अहम है. आप लोगों के सहयोग और प्रोत्साहन के बिना इस मंजिल तक पहुंचना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था. अपनी सदाबहार रचनाओं और शानदार-जानदार प्रतिक्रियाओं द्वारा सहयोग और प्रोत्साहन देने के लिए सभी पाठकों और कामेंटेटर्स के हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद-
धन्यवाद के एक शब्द में सिमट न पाएं खुशियां सारी,
यह तो मात्र कृतज्ञता-ज्ञापन है, धन्यवाद की गागर भारी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “यादों के झरोखे से- 27

  • लीला तिवानी

    यह तो मात्र एक संयोग है कि आज हमारे 2700 ब्लॉग्स पूरे हुए और ब्लॉग के शीर्षक में भी 27 का अंक आ गया. यहां तक पहुंचने के इस लंबे सफर में आप सब लोगों की सक्रिय भूमिका बहुत अहम है. आप लोगों के सहयोग और प्रोत्साहन के बिना इस मंजिल तक पहुंचना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था. अपनी सदाबहार रचनाओं और शानदार-जानदार प्रतिक्रियाओं द्वारा सहयोग और प्रोत्साहन देने के लिए सभी पाठकों और कामेंटेटर्स के हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद-
    धन्यवाद के एक शब्द में सिमट न पाएं खुशियां सारी,
    यह तो मात्र कृतज्ञता-ज्ञापन है, धन्यवाद की गागर भारी.

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