कविता

दरिया

जाने वो पल मुझे क्यूँ भा रहा था
सड़क के किनारे लगे
बिकने को मिट्टी का घड़ा
किसी की याद दिला रहा था
मैं इस पार वो उस पार से मुझे
निहार रहा था इशारों में वो
मुझे बार-बार पुकार रहा था
हवस के आगे मिट गये
प्रेम के किस्से मिट्टी का घड़ा
लेकर अब दरिया पार करेगा कौन?
है प्रश्न?और महिबाल मौन।
— लता नायर

लता नायर

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका सरगुजा-छ०ग०