लघुकथा

आग

”क्या आपने कभी हरा सोना देखा है?” एक आवाज आई.

”कौन है भाई, दिखाई तो नहीं दे रहे, पर बात तो बुद्धिमानी की कर रहे हो!”

”ठीक पहचाना ताऊ, मुझे “बुद्धिमानों की लकड़ी” भी तो कहते हैं न!”

”पहेलियां मती ना बुझाओ, अपना परिचय दो और आज किसलिए आए हो, यह भी बताओ.”

”ताऊ, आज म्हारा जन्मदिन सै. ई वास्ते मैं बहुत खुस हूं.”

”तुम्हारा जन्मदिन! अरे भाई आज 18 सितंबर तो हास्य कवि काका हाथरसी का जन्मदिन है, तुम्हारा क्या है?”

”ताऊ, एक दिन में अनेक लोगों का जन्मदिन हो सकता है. मेरा भी है, मुझे बांस यानी बम्बू कहते हैं. वैसे लोग मुझे “बुद्धिमानों की लकड़ी” भी कहते हैं और हरा सोना भी. आपने समाचारों में सुना होगा न! आज विश्व बांस दिवस या विश्व बम्बू डे है.”

”हां हां, सुना तो था, पर विश्व बांस दिवस क्यों मनाया जाता है?”

”ताऊ, हर किसी के लिए कोई-न-कोई दिन नियत करके उसे इसलिए मनाते हैं कि उसके बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.”

”चलो तुम भी अपने महत्त्व के बारे में बता ही दो.”

”ताऊ, मुझे सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले पेड़ों में से एक माना जाता है, इसलिए मुझे “बुद्धिमानों की लकड़ी” कहा जाता है. मुझसे इतने लाभ होते हैं, कि मुझे हरा सोना भी कहा जाता है.” बांस का जोश चरम पर था.

”अरे भाई, लग रहा है तुम्हारी कहानी लंबी है. जरा बैठकर आराम से बात करो, पानी-वानी पीओगे?” भारतीय संस्कृति के पोषक ताऊ के संस्कार बोल रहे थे.

”ताऊ, पानी पी-पीकर तो मुझमें जान आती है और मेरे बैठने की भी चिंता मती ना करियो, मैं थकता नहीं हूं. मुझसे घर का निर्माण किया जाता है. मैं छत बनाने के काम भी आता हूं. मुझसे बोतलें बनाई जाती हैं, साथ ही मैं कंस्ट्रक्शन यानी निर्माण के काम भी आता हूं. मुझसे आप घर के लिए फर्नीचर बना सकते हैं, टोकरियां, झूले, सजावट का सामान बहुत कुछ बनाने के काम आता हूं. लोग मुझसे अचार-मुरब्बे भी बनाते हैं और अब तो बांस के बिस्किट भी मिलेंगे, जो सामान्य बिस्किट की तुलना में ज्यादा पौष्टिक हैं. बांस का शहद भी चखकर देखिए और गाने-बजाने से तो मेरा जन्म-जन्मांतर का नाता है.”

”वो कैसे?’

”ताऊ, अपने किसन-कन्हैया की बांसुरी बांस से ही तो बने है और बम्बू डांस की मनमोहक प्रस्तुति बांसों से ही होती है. ताऊ, तुम भी तो बांस की लाठी लिए डोलते-फिरते हो, इसलिए ही तो थारे कनै आया सूं!”

”अरे भाई, या लाठी तो म्हारा हथियार सै. खूब बोले-बतियाए, मजो आ गयो.”

”ताऊ, एक बात तो मैं कहना भूल ही गया. मेरे अंदर आग होती है, इसलिए कभी-कभी मेरे जंगलों में आग लग जाती है. मुझसे सीख लै लियो- अपने मन में वैर-क्रोध की आग को भड़कने मती ना दीजो. या वैर-क्रोध की आग खुद को भी जलावै औरां ने भी. इससे दूर ही रहियो. मेरी यो बात याद रखियो, अब मेरी राम-राम.”

”राम-राम भाया, थारी सीख सिर-माथे.” ताऊ ने बांस की लाठी को प्यार से पुचकारा.
18.09,2020
(विश्व बांस दिवस पर विशेष)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “आग

  • लीला तिवानी

    मेघालय के आदिवासी नृत्य बम्बू डांस का मनमोहक नजारा फसल उगने पर या बड़ी खुशी मनाने के लिए स्त्री और पुरुष के संयुक्त डांस के रूप में होता है. फिल्मों में और गणतंत्र दिवस के लोकनृत्यों में भी बम्बू डांस अनेक बार देखा गया है.

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