कहानी

पवित्र रिश्ता

ट्रेन को भी आज ही लेट होना था। स्टेशन की भीड़ देखकर उसका मन और भी उचाट हो कर रहा था।वह जल्दी से जल्दी इस शहर से दूर हो जाना चाहती थीं।भारी भीड़ में भी वह खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थी। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था।चारों ओर उसे लोग ही लोग दिखाई दे रहे थे।सामान बेचने वालों की आवाज,उसके कानों में  शीशे घोल रही थी।उसका मन बहुत दुःखी था।वह अपनी आँखो को नम होने से लगातार रोक रही थी। ट्रेन स्टेशन पर  गई,प्लेटफॉर्म नंबर पाँच पर।शिखा ने अपने बैग को संभाला और भागती हुई ट्रैन में चढ़ गई।धीरे-धीरे ट्रेन चल पड़ी,अब ट्रैन की गति बढ़ती जा रही थी।ट्रैनअपनी मंजिल की तरफ दौड़ रही थी।शिखा भी घर जल्दी से जल्दी पहुँच जाना चाहती थी।ट्रैन हर स्टेशन पर खाली होती जा रही थीं।और  डिब्बे में दो- चार यात्री ही थे,वह भी दूर- दूर बैठे थे।
वह खिड़की से बाहर देख रही थी।उसे पेड़-पौधे बहुत तेज गति से दौड़ते दिख रहे थे।आज प्राकृतिक सुंदरता भी उसे नहीं भा रही थी।आखिर उसकी आँखे फट पड़ी,आँखो से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
आखिर मेरा क्या अपराध था,सुनील?वह बैंक में मैनेजर था। लंबा कद,तीखे नैन-नक्श,प्रतिभाशाली कम बोलने वाला, उसका व्यक्तित्व किसी को भी अपनी तरफ खींचने के लिए काफी था। उसका प्रेम-पूर्ण व्यवहार सहज ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था।शिखा ने भी प्राइवेट सेक्टर में अपना करियर बनाने की ठान ली थी। पहले उसकी एक सहेली भी बैंक में थी। उसी की मदद से वह भी बैंक में जॉब हासिल कर पाई थी।
वह एक साधारण परिवार से थी।वह सांवली सूरत के साथ भी वेल मैनर्ड थी। वेशभूषा उसकी कमाल की थी।वैसे भी सुंदरता दो ही तरह की होती है।एक रंग रूप से सुंदर,दूसरा व्यवहार-कुशल।वह हँस-मुख थी,जब बोलती कानों में मीठा शहद ही घोलती थी। सुनील की सारे स्टॉफ में धक थी।वह अपने प्रेम- पूर्ण व्यवहार से सबके दिलों पर राज करता था।कस्टमर भी उससे बहुत खुश थे,वह किसी को नाराज नहीं करता था।वह हमेशा सहयोग की भावना रखता था।शिखा भी सुनील के इस व्यवहार से अछूती ना थी। वह सुनील के बारे में अधिक नहीं जानती थी।वह धीरे-धीरे उसकी ओर आकर्षित होती जा रही थी।सुनील वैसे तो सभी कर्मचारियों से दूरी बनाकर रखता था।पर वह शिखा की ओर खिंचता जा रहा था।वह दिन भी आ गया, जब दोनों एक-दूसरे के प्यार में खो गए।वह सुनील के प्यार में इस तरह पागल थी कि वह समाज से भी लड़ जाना चाहती थी।प्यार में दोनों घंटे फोन पर बात करते रहते थे।
फोन की घंटी बज रही थी।सुनील की पत्नी ने फोन उठाया जी, किसी शिखा का फोन है,तुम्हारे लिए। ठीक है कह कर उसने फोन उठाया।फॉर्मल बातें करने के बाद उसने फोन यह कर काट दिया,ऑफिस में बात करते हैं।
सुनील की पत्नी इस बात से अनजान थी या अनजान बनने का अभिनय कर रही थी।सुनील,कोई खास फ्रेंड है,उसने कुछ नहीं कहा,तुम नाश्ता तैयार करो।मुझें आज जल्दी जाना है,सुधा।वह आज असमंजस में थी,उसे किसी अनहोनी का डर सता रहा था। उसका मन अंदर तक पीड़ा महसूस कर रहा था।वह खुद से कह रही थी ऐसा कुछ नहीं होगा।
मेरा सुनील ऐसा नहीं है,मुझें अपने प्यार पर पूरा विश्वास है। अपने पवित्र रिश्ते पर पूरा भरोसा है।ऑफिस ना जाकर, सुनील ने शिखा को होटल में बुला लिया।इधर-उधर की बातें करने के बाद,वह  गंभीर हो गया।शिखा मैं शादीशुदा हूँ।क्या उसका हँसता हुआ चेहरा गंभीर हो गया?वह बोल उठी,मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मैंने तुम्हें अपना पति माना है। मैं तुम्हें नहीं खोना नहीं चाहती। तुम सिर्फ मेरे हो,मैं तुम्हें किसी के साथ नहीं बाँट सकती।चाहे कुछ भी हो जाए,इतना कह कर वह आँखो में आँसू लेकर निकल पड़ी। वह लगातार रो रही थी किसी को खोने का दर्द इतना दुख दे सकता है।नहीं सुनील मेरा हैं,सिर्फ मेरा।वह इसी उधेड़बुन में घर पहुँच गई ।
उसने सुनील के घर फोन किया।सुधा जी मैं आपसे मिलना चाहती हूँ। सुधा ने फोन पर हाँ कर दी। पर सुनील से कुछ नहीं कहा।दोनों स्टेशन के बाहर बनी कैंटीन में मिली।जी मेरा नाम सुधा है,और मैं शिखा।उसने चाय का ऑर्डर दिया।दोनों एक दूसरे को देख रही थी।सुधा जी,आप बहुत सुन्दर हो।थैंक यू,शिखा।प्लीज मुझे अपनी बड़ी बहन समझो, शिखा।मन में जो कुछ भी हो कह दो।शिखा को इस प्रेम- पूर्ण व्यवहार की आशा ना थी।
सुधा ने शिखा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा।क्या तुम सुनील से प्यार करती हो?क्या तुम्हें पता था कि सुनील शादीशुदा है?मुझें कुछ भी पता नहीं था,पर मैं उसके बिना नहीं रह सकती,दीदी।क्या तुम मुझें अपनी दीदी मानती हो? क्या तुम अपनी दीदी का घर तोड़ना चाहती हो?क्या तुम्हारा और सुनील का रिश्ता पवित्र रिश्ता कहलाएगा?चुप क्यों हो, अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा ये रिश्ता पवित्र है,तो मैं सुनील को छोड़ दूँगी,अपनी छोटी बहन के लिए।शिखा के आँसू नहीं रुक रहे थे।वह सिर्फ इतना ही बोल पाई,दीदी मैं जा रही हूँ, हमेशा के लिए।आपका प्यार सच्चा है आपका रिश्ता पवित्र है। हो सके तो मुझे माफ कर देना।आपको कसम है, इस पवित्र रिश्ते की। सुधा ने उसे गले लगा लिया।
ट्रैन रुक गई।वह अपने सामान को लेकर घर की ओर बढ़ रही थी।अब उसका मन विचलित नहीं था।उसे अपनी गलती का अहसास था।उसे अभी भी सुधा जी का मुस्कुराता चेहरा दिख रहा था।और वह रिश्ता भी,जिसे लोग पवित्र रिश्ता कहते हैं।

राकेश कुमार तगाला

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