राजनीति

पाकिस्तान में शिया समुदाय का भविष्य संकट में

पाकिस्तान जो कि इस्लामी विचारधारा के कारण हिन्दूस्तान से अलग होकर एक पृथक इस्लामिक देश बना मोहम्मद जिन्ना ने पाकिस्तान में मुसलमानों को सुरक्षित रहने का वादा किया था, जिन्ना स्वयं शिया मुस्लिम थे, फिर भी आज पाकिस्तान में शिया सुरक्षित नही। अंग्रेजों के छल और जिन्ना के विश्वासघात के कारण भारत का यह बंटवारा मजहब के आधार पर हुआ किंतु फिर भी हिन्दूस्तान से जाने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया गया। हिन्दूस्तान एक लोकतांत्रिक देश बना और पाकिस्तान मजहबी आधार पर इस्लामिक देश। आज जिन्ना के उस इस्लामिक देश में मुसलमानों का नरसंहार निरंतर जारी है। ना वहां हिंदू संगठन है ना संघ ही है और ना ही हिंदू समाज ताकतवर है अपितु अल्पसंख्यक होने के कारण नारकीय जीवन जीने को विवश है। तो फिर वह कौन लोग हैं जो पाकिस्तान में निरंतर शिया मुसलमानों का नरसंहार कर रहे हैं  ? गत सप्ताह में पाकिस्तान में कई शिया विरोधी रैलियां हुई जिसमें कराची की रैली प्रमुख है जिसमें 10000 से अधिक सुन्नी मुसलमानों ने एकजुट होकर शिया मुसलमानों के बहिष्कार और उन्हें पाकिस्तान से समाप्त कर देने के नारे लगाए । यह कोई आश्चर्य करने वाली बात नहीं है बल्कि पाकिस्तान के जन्म से ही शिया मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ते रहे विगत 5 वर्षों में इन अत्याचारों में वृद्धि हुई इसका कारण इमरान सरकार का सुन्नी उग्रवादियों के प्रति नरम रवैया कहा जा सकता है। पाकिस्तान में सुन्नी मुसलमान 80% और शिया मुसलमान लगभग 20% की संख्या के अनुपात में यह बड़ा अंतर शियाओं पर अत्याचार का एक बड़ा कारण है इसके पीछे पाकिस्तान के सऊदी अरब सरकार से संबंधों को भी आधार माना जा रहा है इसके कारण शियाओं पर होते अत्याचार पर पाकिस्तान सरकार मौन है। वैसे तो सुन्नी मुल्क सऊदी अरब व शिया मुल्क ईरान दोनों ही पाकिस्तान के करीबी रहे हैं फिर भी शियाओं पर बढ़ते अत्याचारों के संबन्ध में इमरान की पाक सरकार कुछ सख्त कदम नही ले सकी। अब यह चिंगारी भीषण आग बन चुकी है पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात है, बीते सितंबर शियाओं के विरुद्ध हुई रैलियों में खुले रूप में उनके बहिष्कार और प्रतिबंधों के नारे लगाए गए। सिपाह ए साहाब नामक संगठन के आह्वान पर कराची के हजारों सुन्नी मुसलमानों ने रैली निकाल कर शियाओं के विरुद्ध बहुत जहर उगला। शियाओं को काफ़िर और गैर इस्लामिक तक बताने से नही चुके। जबकि सुन्नी व शिया दोनों ही मोहम्मद को अपना पैगंबर मानते है, दोनों ही इस्लाम व कुरान को मानते है, परन्तु मोहम्मद के बाद के कुछ पैग़ंबरों के लिए शियाओं की सहमति नही है, इसी अंतर के कारण इनका आपसी विवाद भी है। जहां भारत पाकिस्तान बांग्लादेश में रहने वाले शिया मुहर्रम पर ताजिया बनाते और उसी से जुड़े है, वहीं सुन्नी देशों में ताजिये का कोई अस्तित्व नही, वे इसे गलत मानते है, एक तरह की मूर्तिपूजा कहकर इसका विरोध करते है, सुन्नियों के प्रमुख सऊदी अरब भी ताजियों से सहमत नही रहे। क्योंकि ताजिए कभी मूल इस्लाम का अंग थे ही नही।

इसे मुसलमानों का सबसे बड़ा जातिवादी संघर्ष भी कहा जा सकता है, जहां सुन्नी (अहमदिया, बरेलवी, देवबंदी, हनफ़ी, मालिकी, शफाई, वहाबी, सलफ़ी, अहलेहदिस) सदैव शियाओं (इस्ना अशरी इस्माइली, फातमी, बोहरा, खोजे, नुसरे) से नफरत करते रहे है। ना ही कोई अहमदिया, बोहरा मस्जिद में जायेगा, न ही उन्हें सुन्नियों की मस्जिद में आने की अनुमति रहती है। नफरत या जाति व्यवस्था की बात और थी, परन्तु अब तो बात नरसंहार तक जा पहुँची है। विगत 3 दशकों में पाक सेना व सुन्नी कट्टर पंथी संगठनों के द्वारा 30000 से अधिक शियाओं को मार दिया गया। आज भी प्रत्येक वर्ष 200 से अधिक शिया युवाओं का पता ही नही चलता कि वे कहां गए। जिनमें से कई पत्रकार व आंदोलनकारी रहे। इस तरह की घटनाओं से शिया समुदाय में बहुत आक्रोश है, उनके दुर्व्यवहार की पाक सरकार में कोइ सुनवाई ही नही। उन्हें गद्दार काफिर मुहाजिर सब कुछ कहा जाता है अनेक तरीकों से अपमानित किया जाता है तिरस्कृत दृष्टि से देखा जाता है। पाकिस्तान वैसे भी अल्पसंख्यकों के लिए अच्छा मुल्क साबित नहीं हुआ परंतु अपने ही शिया मुसलमानों की दुर्दशा पर पाकिस्तान के हुक्मरानों का ध्यान कभी नहीं गया क्योंकि वे वहाबी मानसिकता से पोषित कट्टरता को कभी चुनौती देने का सामर्थ्य नहीं कर सके। फिर पाक सेना हो, पुलिस विभाग हो, राजनीति हो हर तरफ सुन्नियों का प्रभुत्व रहा। अब स्थिति गृहयुद्ध के निकट आती दिखाई दे रही है। यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान अपने ही देशवासियों के हाथों मिटने वाला एक और देश बन जायेगा। जो कि हमने विगत 2 दशकों में कई मुल्क को समाप्त होते देखा है। यहां शिया मुसलमानों से भी अधिक अहमदिया समुदाय की स्थिति विकट है सन 1974 के कानून संशोधन में अहमदिया मुसलमानों को तो मुसलमान मजहब से ही खारिज कर दिया। उन्हें अल्पसंख्यकों की तरह हिंदू ईसाई व सिक्खों की श्रेणी में रखा जाता है। दुनिया के अन्य देशों में अहमदिया मुस्लिम भले ही एक मुसलमान के रूप में जीवन जी रहे होंगे, परंतु पाकिस्तान का अहमदिया मुसलमान अपना मुस्लिम होने का अधिकार खो चुका है। क्या आप सोच सकते है कि पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमान “अस्सलाम ओ अलैकुम” नही कह सकता, ऐसे ही अनेक प्रतिबन्ध है। अहमदिया मुस्लिम अपने परिवेश के कारण अलग दिखाई देते है ये पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रहते है, अपने बुर्के और टोपी के अलग प्रकार के कारण इन्हें दूर से पहचाना जा सकता है। अहमदिया लडकिया दिखने में बहुत सुंदर होती है, इसी कारण वेश्यावृत्ति में अधिक संख्या अहमदिया युवतियों की ही मिलेगी, पाकिस्तान इनका दुरुपयोग चीन से संबन्ध साधने में भी करता है, ऐसे कई विवाह या कहें समझौते हुए जिसमें चीनी अधिकारियों को मुस्लिम युवतियों को सौंपा गया। ये सभी युवतियां अहमदिया, शिया, या अन्य अल्पसंख्य वर्ग से होती है। रिपोर्ट के मुताबिक पहले चीनी पाकिस्तानी ईसाई लड़कियों को अपना शिकार बनाते थे पर अब हिन्दू, मुस्लिम कई पंथ की लड़कियों को निकाह के नाम पर चीनी वैश्यालयों में परोसा जाता है, यह हम नही कह रहे, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी AFI ने यह बताया। पाकिस्तानी लड़कियों से निकाह करके उन्हें वेश्यालय में बैठाने का षड्यंत्र पिछले कुछ वर्ष से ही शुरू हुआ और इससे भी बड़ी बात यह है कि चीन मानव अंगों की तस्करी के अवैध धंधे में भी इनका दुरुपयोग करता है। शिया मुस्लिम हो या अहमदिया, हिन्दू सिक्ख अल्पसंख्यक पाकिस्तान अब सबके लिए नर्क बन चुका है, जिससे निकलने के सिवा उनके पास कोई अन्य रास्ता नही। पाकिस्तान छोड़ने वालों में शिया व अहमदिया मुस्लिमो की संख्या लाखों में है। विश्व जगत को पाकिस्तान में शियाओं पर बढ़ते इन अत्याचारों के लिए नकेल कसने की जरूरत है, यदि यह लगाम न लगी तो कहीं आतंकी और उग्रवादी शक्तियां पाकिस्तान से शियाओं,अहमदिया, अल्पसंख्यक हिन्दू सिक्खों का अंत न कर दे। इसी कारण शिया संगठन भारत की ओर सकारात्मक दृष्टि से देख रहे है, कि भारत सरकार पीओके को पाकिस्तान से विभक्त कर पाक सरकार को सबक सिखाये।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश