कवितापद्य साहित्य

पता न चला!

हम साथ खेलते-खेलते
कब बड़े हो गए, पता न चला,
हम लड़ते झगड़ते
कब समझदार बन गए, पता न चला,
और हम हँसते- हँसते
जीवन के प्रति कब गंभीर हो गए, पता न चला!
जीवन के हर संघर्ष में
तुमने साथ दिया,
हर अभाव को अपनी मुस्कुराहट
से दूर भगा दिया,
इस संसार के चक्रव्यूह में
तुम मुझसे कितनी दूर चले गए, पता न चला!
हम एक दूसरे की ख्वाहिशों
को पूरा करते,
हम एक दूसरे खुशी के लिए
कुछ भी करते,
बीतते समय के साथ
कब हमारे सपने बदल गए, पता न चला!
हम दोनों ही तो थे
एक दूसरे की ताक़त,
हम दोनों ही तो थे
एक दूसरे की हिम्मत,
हम कब अपनी- अपनी
मन्ज़िलों की तरफ बढ़ गए, पता न चला!

रूना लखनवी

नाम- रूना पाठक उप्पल (रूना लखनवी) पता- दिल्ली, भारत मैंने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातकोत्तर किया है। वर्तमान में, मैं एक फार्मास्युटिकल कम्पनी में वरिष्ठ प्रबंधक की तरह कार्यरत हूँ। साहित्यिक उपलब्धि :- वूमेन एकस्प्रेस, दक्षिण समाचार प्रतिष्ठा, आज समाचार पत्र , कोलफील्ड मिरर , अमर उजाला काव्य (ऑनलाइन) , पंजाब केसरी (ऑनलाइन) , मॉम्सप्रेस्सो में कविताएँ, लघु कथा कहानी, स्वतंत्र अभिव्यक्ति की रचनाएँ प्रकाशित। सम्पर्क https://www.facebook.com/Runa-Lakhnavi-108067387683685 सम्मान: 1. मॉम्सप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान; 2. राष्ट्रीय कवयित्री मंच- नारी शक्ति सम्मान 2020 3. साहित्य संगम संस्थान- सम्मान 4. अभिनव साहित्यिक मंच - सम्मान