कविता

मुक्त ही करो

आखिर कब तक हम बेटियां
यूं ही लुटती पिटती मरती रहेंगी,
कब तक हमारी खुशियां
हमारा सुखचैन
यूं ही छिनता रहेगा ।
कभी गर्भ में,कभी दहेज के लिए,
कभी जिस्म के भूखे दरिंदों की
भेंट हम चढ़ते रहेंगे ।
कब तक हम गरम गोश्त के
भूखे भेड़ियों की भूख
शान्त करते रहेंगे ।
आखिर हमारा भी तो कोई अस्तित्व है या हमें जीने का कोई हक नहीं है ।
यदि राष्ट्र समाज की नजरों में
हमारा भी कोई अस्तित्व है तो
आप लोगों का कोई कर्तव्य नहीं है ?
कब तक आप मौन बने रहेंगे ?
अपनी बहन बेटियों के लाशों पर
मातम करते रहेंगे ?
अब तक जाने कितनी
बहन बेटियों को खोने के बाद भी ,
समाज/कानून और सरकारों को
शर्म नहीं आयी,
जो हमारी हित में
खौप न पैदा कर पाई।
या सिर्फ अपनी ही बहन बेटी की
इज्जत लुटते/अमानवीय मौत
देख ही शर्म आएगी ,
आखिर मानवता समाज कानून
कहाँ है ?
इससे अच्छा तो जंगलराज है
जहाँ कोई किसी का
पुरसाहाल नहीं है।
अब तो इस समाज/समाज के
रहनुमाओं/कानून के रखवालों की बेशर्मी को देखकर
सोचती हूँ कि यही अच्छा होता
कि मेरा जन्म ही ना होता है ,
बेटी का अस्तित्व ही मिट जाता
अरे बेशर्म समाज के ठेकेदारों ,
कानून के रखवालों ,
बेहयाई छोड़ो, आंखें खोलो,
फिर विचार करो ।
अब तो कुछ काम करो
इस समाज में बढ़ रहे

जंगलराज को समाप्त करो ।

या फिर हमें जन्म न लेने देने का
कानून ही पास करो।
फिर चैन से जी भरकर
आराम ही आराम करो।
हमारे अस्तित्व पर तो
अब और न कुठाराघात करो,
बस बहुत हो चुका
हमें अपने इस समाज से
अब तो मुक्त ही करो।
★ सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921