कविता

किन्नर

ये किन्नर ये किन्नर
जब भी दे दे दुआ,
फर्श से अर्श तक
हम चले जाएंगे।
तेरे सम्मान में
तेरे अभिमान में,
दुनिया में समाज को
बदल कर दिखाएंगे।
ये किन्नर ये किन्नर….
जब भी पैदा हुआ
लोगों ने बुरा कहा,
तेरी परवरिश सदा
मां से रह गई जुदा।
तेरे खोए अतीत से
मां से मिलती प्रीत से,
तुझको ना करे जुदा
संदेशा दे जाएंगे।
ये किन्नर ये किन्नर….
प्रथा जो चली आई
अरावन से विवाह की,
एक दिन की दुल्हन
मांग फिर क्यों मिटी?
तेरी मनोदशा से
खेले अब ना कोई,
समाज में नई दिशा
हम दे जाएंगे।
ये किन्नर ये किन्नर…
ब्रह्म छाया से बने
संगीत रग में बसे,
देते हैं दुआएं जब
नवदीप हो सकें।
बदले में दुआओं में
मन की भावनाओं में,
प्रेमी की अलग ज्योति
को हम चलाएंगे,
ये किन्नर ये किन्नर।

— प्रणाली श्रीवास्तव

प्रणाली श्रीवास्तव

युवा कवयित्री व गीतकार जनपद-सहडोल,मध्य प्रदेश