कविता

नब्ज़

मैं नेता हूं
मगर मैं दूसरे किस्म का नेता हूं
गली गली नहीं भटकता
जनता की नब्ज नहीं टटोलता,
क्योंकि मुझे खुद से प्यार है
जनता पर क्या एतबार है।
मैं सत्ता के गलियारों में
सत्ता की नब्ज टटोलता हूं ,
सत्ता में रहने के लिए
सूत्र ढूंढता हूं ।
अपनी पार्टी का अध्यक्ष भी हू्ँ
और कार्यकर्ता भी,
मैं खुद पूरी पार्टी हूँ।
ईमान धर्म से मेरा
कोई न नाता है,
जनता की सेवा
मुझे नहीं भाता है।
बस!मैं तो बस
अपनी भलाई चाहता हूँ,
जनता जाये भाड़ में
मैं कुछ नहीं जानता हूँ।
सत्ता के लिये मैं
कुछ भी कर सकता हूँ,
कुर्सी के लिए मैं
नीचे तक गिर सकता हूँ।
★ सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921