बहुभाषाविद भगतसिंह
सरदार भगत सिंह ने दिल्ली सेंट्रल एसेम्बली में बम फेंकने की योजना बनायी। यह बम केवल जोरदार आवाजवाली और ध्रुमसहित थी, क्योंकि भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा न हो और इन अंग्रेजों तक ऐसे निरीह भारतीयों की ‘आवाज़’ भी पहुँचे। शुरुआत में उनके दल के लोग ऐसा नहीं सोचते थे, परंतु सर्वसम्मति से इस कार्य के लिए भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त को चुना गया। नियोजित योजनानुसार 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में इन दोनों ने ऐसे स्थान पर बम फेंका, जहाँ कोई मौजूद न था । पूरा सेंट्रल हॉल धुएँ से भर गया। भगत सिंह चाहते तो भाग भी सकते थे, पर उन्होंने दण्ड पाने हेतु मन से स्वीकृति ले चुके थे, चाहे फाँसी ही क्यों न हो जाय ? तभी तो उन्होंने खुद को भागने-भगाने से मना कर दिया। उस समय वे दोनों खाकी कमीज़ और निकर में थे। बम फटने के बाद उन दोनों ने ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ का नारा भी लगाए तथा अपने साथ लाये पर्चे को हवा में उछाले । कुछ ही देर बाद पुलिस आई और इन दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया। सुखराम इनकी मदद में थे, जो बाद में धराये! 9 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। सरदार भगत सिंह न सिर्फ क्रांतिकारी देशभक्त थे, अपितु एक अध्येता, कलम के जादूगर व दार्शनिक लेखक, पत्रकार और इन सबसे भी बड़े एक महान इंसान थे। उन्होंने 23 वर्ष की अल्पायु में संसारभर के कई क्रांतियों के बारे में गहन अध्ययन किया था । उन्हें कई भाषाओं की जानकारी थी, यथा- पंजाबी, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला और आयरिश भाषा भी !