गीत/नवगीत

गीत – मेरे मन

आशाओं के  मंगल दीप ,जला मेरे मन…
तिमिर निराशाओं के, अब ना ला मेरे मन..

हर रात की  जब भोर हुई तो, तू क्यों रोता है
बदल जाते हैं मौसम भी ,क्यों धीरज खोता है
गहन अंधेरों में नव ,दीप जला मेरे मन…

चलता चल तू अपनी ,राह बनाता जा
सामने आए तो, बाधा विध्न हटाता जा
धीरज और लगन की ,जोत जला मेरे मन…

पतझड़ में उजडी़ बगिया ,फिर से बस जाये
ठहरें ना तूफा़न सदा ,आके फिर फिर जाये
कुछ दिन के हैं दर्द ,ना तू भुला मेरे मन…

— सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश