कविता

सोच

आदमी सोचता है
बहुत खास है वो
लोगों के लिए
कैसा यह भ्रम है
हकीकत तो यह है
कोई फर्क नहीं पड़ता
किसी को
किसी के होने
न होने से
नाम भी भूल जाते हैं लोग
जो चार दिन
आप न आए
नजर
इसीलिए
चाहते हुए भी
नहीं छोड़ पाता
यह आभासी दुनियां
मुझे अपने दोस्तों से
हो गया है प्यार
उनके बिछड़ने से
डर लगता है
मुझे मालूम है
बिछड़ना क्या होता है
इसीलिए
कम से कम एक बार
उल्टा सीधा
कुछ भी
चेप देता हूं
फेसबुक पर
दिखाने को यह
कि टाइगर
अभी जिंदा है
हाहाहाहाहा

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020