राजनीति

कोरोनाकाल में बिहार चुनाव के मायने !

समस्या हम बिहारी नहीं, ‘बिहारी नेता’ है ! समस्या कोई ‘ठाकोर’ या ‘ठाकरे’ नहीं हैं ! समस्या हम स्वयं बिहारी हैं! इस बात को हम जितनी जल्दी समझ और जान लेंगे उतनी जल्दी भला होगा। सोशल एक्टिविस्ट सुश्री अर्चना कुमारी ने इस संबंध में स्पष्ट लिखा है कि  पुणे, हैदराबाद, बंगलुरु से लेकर Google और Microsoft के office में बैठे बिहारी अभियंताओं, और देश के अनेक कारखानों में बिहारी प्रबंधकों-महाप्रबंधकों, दिल्ली में बैठे बिहारी IAS अधिकारियों-नौकरशाहों और चिकने लाल गाल वाले बिहारी नेता-मंत्रियों को देखकर आपको गर्व होता होगा, जरूर होता होगा। मुझे कोफ्त होती है। क्यों? हम पढ़-लिख कर ज्ञानी हो जाये या अनपढ़ रह जाये- हमें प्रदेश छोडना ही होता है। जिस प्रदेश के युवाओं को अपनी मिट्टी से प्यार नहीं उन्हें इस देश की मिट्टी कैसे प्यार देगी? क्यों आजादी के 70 साल बाद भी बिहारी मिट्टी अपने बेटों-बेटियों को रोजगार का आँचल दे पाने से विफल रही है? यह सवाल किसी ठाकोर या ठाकरे से नहीं बल्कि उनसे पूछना चाहिये, जिन्हे हम अपना भाग्य विधाता मान बैठे हैं। यह सवाल श्रीकृष्ण सिंह से लेकर नीतीश कुमार तक से पूछा जाना चाहिये। यह सवाल लालू के काबिल बेटों, अर्थशास्त्री सुशील मोदी, मौसम वैज्ञानिक रामविलास, बात-बात पर पाकिस्तान भेजने वाले गिरिराज सिंह, महापंडित अश्विनी चौबे और बिहार की चीनी मिलों का सर्वनाश कर चुके कम्युनिस्टों-कांग्रेसियों से पूछा जाना चाहिये। अच्छी पढाई चाहिये या फिर बेहतर ईलाज, हमें बिहार छोड़ना ही पड़ता है। रोजगार और रोटी की तो उम्मीद भी मत रखिये। कुछ मुठ्ठी भर सरकारी नौकरों और बूढ़े होते किसानों को छोड़ कोई भी बिहारी अपनी माटी में लोटना और लौटना नही चाहता, क्यों? आर्यभट्ट की महान संतानें एक भी ढंग का विद्यालय या विश्वविद्यालय नहीं बना पाईं। अस्पताल की तो पूछिए ही मत, क्यों?देश में सबसे अधिक अभियंता पैदा करने वाले बिहार के गाँधी सेतु पर पिछले 27 सालों से मरम्मत का काम चल रहा है। भाई, हम पुल का मरम्मत कर रहें हैं या नया पुल बना रहे हैं? इस पुल के मरम्मत पर हम जितना खर्च कर चुके हैं- उतने में और कम समय में नया और बेहतर पुल बनाया जा सकता था। पूरी गंगा पर गिनती के 5 पुल हैं बिहार मे। उनमें से एक गाँधी सेतु आखिरी सांसें ले रहा है, बस किसी दुर्घटना की प्रतीक्षा है, भारत भाग्य-विधाताओं को। क्या पैसे की कमी है या थी? नहीं। अगर पैसे की कमी होती तो जगन्नाथ मिश्र से लेकर लालू प्रसाद तक के पास लूटने के लिये पैसा नहीं होता खजाने में। बिहार के सिनेमा घर, पेट्रोल पम्प और नये बनते सड़कों की ठेकेदारी में लगी काली कमाई की आलिशान निशानी आपको हर बिहारी शहर में देखने को मिलेगी। हर शहर के नेता-मंत्री का राजमहल आपको उनके दारिद्र्य का भान करायेगा। जहाँ आज भी जेलों से सरकारें चलायी जा सकती हो। जेल में बन्द कोई भी जननायक आपको संदेश भेज कर बुला लेता हो और अपनी बिन माँगी कृपा आप पर थोप देता हो। दूसरी तरफ उसी प्रदेश में मजदूरों का पलायन करता हुजूम, बसों और ट्रेनों में बकरियों के झुंड की तरह ठूँस दिया जाता हो, और हमें सब सामान्य लगता हो। तो क्षमा कीजियेगा हम महाराष्ट्र और गुजरात ही नहीं बहुत जल्दी दिल्ली और दूसरे प्रदेशों में भी पीटते मिलेंगे। बुरा लग रहा होगा, पर यही वो विकास है, जिसे ओढ़कर नीतीश कुमार विकास पुरुष बने बैठे हैं। वाल्मीकि, जनक, याज्ञवल्य, चंद्रगुप्त, अशोक, दिनकर और बेनीपुरी पर घमंड करने वाले हम बिहारी कब तक इतिहास को सीने से चिपका कर इतराते रहेंगे। प्रश्न ये नहीं की हम क्या थे? प्रश्न ये है की हम क्या हैं और क्या होंगे? बिहार के अनेक बेटे-बेटियों ने एकल प्रगतियां बहुत की हैं, और कर भी रहें है। पर एक समाज के रूप मे बिहार हर दिन पतन के गर्त में जा रहा है। सुपौल के आवासीय बालिका विद्यालय पर बच्चियों के ऊपर हमले में लड़कों के साथ उनके माँ बाप का शामिल होना, और ब्रजेश ठाकुर जैसे राक्षसों का समाज में सम्मानित होना समाजिक पतन की पराकाष्ठा है। हाजीपुर में जीतियाव्रती महिला के साथ माँ गंगा की अमृतधारा के बीच सामूहिक बलात्कार, केवल उस महिला के सम्मान का हनन नहीं, बल्कि माता जानकी के लव-कुशों के अभिमान और सम्मान का मर्दन था। एक समाज का इससे अधिक और क्या पतन होगा? संगीत के नाम पर अश्लील भोजपुरी गाने, डांस के नाम पर सोनपुर मेले से लेकर बाबा गोरखनाथ के मेले तक में आयोजकों द्वारा प्रायोजित नंगा नाच, हमें क्या सीख दे रहा है- हमारे सामने है। मिठापुर बस अड्डे पर 13-14 साल के किशोर आपको अपने ऑटो में खींचते दिख जायेंगे, मजाल है आप मना कर पाये। नहीं जाना हो तो भी चलिये। मना करके देखिए, वही किशोर आपकी माँ-बहन को सम्मानित करके निकल जायेंगे। चंद कदम दूर लगा पुलिस चेकपोस्ट पूरी मुस्तैदी से माता लक्ष्मी की आराधना के पुण्यकार्य में लगा होगा। बिहार का यह नया विकसित रूप हमें झकझोर कर नहीं जगा पाता! क्योंकि इन सबको हमने आत्मसात कर लिया है। ये है हमारे बिहार की समाजिक प्रगति। इस आलेख के माध्यम किसी नेे सटीक ही व्याख्या की है, उन्हें सादर प्रणाम।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.