कविता

नयन

मूक रहकर भी
बहुत कुछ कहते है,
सुख दुःख ,हर्ष विषाद के
भाव भी सहते है।
हंसते मुस्कराते, रोते भी हैं
अंतर्मन के भाव खोलते भी हैं।
बहुत कुछ कहकर,
जाने कितना कुछ
अनकहे रह जाते,
नयनों की अपनी भाषा है,
पर शायद हमें ही
इन्हें पढ़ने का सलीका नहीं आता,
तभी तो हम शिकायतें करते हैं
नयन मौन हो सब कुछ सहते हैं,
अपनी भाषा में
अपने भाव उकेरते हैं,
कोशिशें करते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921