कविता

पतझड़

पतझड़ निशानी है
कि पत्ते परिपक्व हो गए हैं
उनके अब गिरने की तैयारी है
और एक एक कर
वो पेड़ की शाखाओं से
गिरने लगे है.
तो क्या पेड़ रोता है
क्या आंसू टपकाता है
नहीं ना
उसे मालूम है
इन्हें गिरना ही है
तो शौक कैसा
बुढापा भी तो ऐसा ही है
उसके आने पे देह क्षीण
होने लगती है
और पूर्ण परिपक्व
होने पर
एक दिन
निर्जीव हो
बंधन से मुक्त हो जाती है
बन्धु
फिर काहे का रोना
कैसा रोना
कैसा आंसू टपकाना
और कैसा शौक करना
पत्ते को डाली से टूटना ही था
सो टूट गया
जहां से टूटा
वहीं से एक नया पर्ण
पल्लवित हो
मुस्कुरा उठा

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020