कविता

रिहाई

कोई उन से,
जा कर कह दे,
कि ऐ दोस्त,
अपने साथ को,
तुम मेरी मजबूरी,
बनाने की हर्गिज़,
कोशिश न करो,
क्योंकि ये कोई,
ऐसी जंज़ीर नहीं,
जो मुझे बाँध सके।
हम तो खुद ही,
तेरे स्नेह और,
प्यार के नाज़ुक ,
पर बेहद मजबूत,
धागों से कुछ।
इस क़दर बंध,
कर गिरफ़्तार,
हो चुके हैं कि,
इस क़ैद से,
अब किसी भी।
सूरत में रिहाई,
भी नहीं चाहते।

— नीलोफ़र नीलू

नीलोफ़र नीलू

वरिष्ठ कवयित्री जनफद-देहरादून,उत्तराखण्ड