कविता

खबरें

झंझोड़ती झकझोरती खबरें
कुछ हकीकत कुछ बनावटी
प्रभाव तो सभी है डालती
कोई मसालों में लपेट रहा
कोई चुनावी रंग भर रहा
तो कोई सनसनी बना के परोस रहा
न सच से वास्ता
न सम्वेदनाओं से रिश्ता कोई
टीआरपी का खेल है सारा
चटपटी ख़बरों का नाश्ता
इनका तो तडकों से है वास्ता
हिंसक वारदातों से दिल है दहल जाता
बेटियों पर हो रहे अत्याचार से
मन है घबरा जाता
घिनौने कृत्य से
हत्या और एसिड अटैक से
सारा शहर सहम जाता है
समाचार और भी हैं
राहत सुकून मनोरंजक
ज्ञानवर्धक विकास की बातें भी होती हैं
पर इन सब पर हावी
वो अपराध वो वहसी वारदातें
छीन लेती हैं नींदें
चिंता अवसाद से दिल भर आता है
आक्रोश से क्रोध उमड़ आता है
कभी सिस्टम को कभी राजनीति को
कोसने के सिवा हम कर भी क्या पाते हैं
ये वो खबरें हैं जो
अंदर तक हिला जाता है
मानवता, संस्कार की नींव तक में
हलचल सा मचा जाता है।

*बबली सिन्हा

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