कविता

करोना

आजकल दिन कुछ अच्छे नहीं चल रहें हैं निराशा,उदासी,बेगानापन,चित्त भटकाव सभी का चौतरफा आक्रमण हो रहा है. सोचा चलो किसी हस्त विषेशज्ञ की सलाह लूं. यह सोच कर मैं घर से निकला , निकलते ही एक सज्जन मिल गए . हाल चाल पूछने के बाद उन्होंने भी अपनी मनोस्थिति को शेयर करते हुए कुछ कुछ अपना हाल मेरे जैसा ही बताया . जब सोसायटी के गेट पर पहुंचा तो एक व्यक्ति से और सामना हो गया वो भी अपनी व्यथा बताने लगे.मुझे लगा मैं ही नहीं मेरे जैसे और भी है वक़्त के मारे हुए.
बहराल जिस कारण से मैं घर से निकला था उस कार्य के लिए आगे बढ़ गया.
एक मित्र है, जिन्हें हाथों की रेखाओं का अच्छा ज्ञान है जैसा कि उनके श्रीमुख से सुना, उनकी शरण में जा पहुंचा. दरवाजे की घंटी बजाई, सुनकर वह बाहर आए और मुझे देख बोले कैसे आए. मैंने कहा पहले अंदर तो आने दो तब कहीं अपने आने की व्यथा बताऊं. दांतों को निपोर कर बोले अरे अरे आओ. हालांकि उनके मन के भावों से लग रहा था कि कह रहे हो कहां अा गया यह इस कोरोना काल में. मैं भी झट थोड़े खुले किवाड़ से अंदर धस गया.
आसान पर विराजमान हो बोले क्या है मंतव्य तुम्हारा जिसके कारण तुमनें उठाया रिस्क यहां तक आने का. मैंने कहा आजकल दिल बहुत बैचेन रहता है सोच चलो आपको दिखा लूं. वह बोले भाई तो तुमको डॉक्टर के पास जाना चाहिए था. मैं बोला नहीं नहीं बो बात नहीं है, दिल तो मेरा ठीक काम कर रहा है पर दिन ठीक नहीं चल रहे इसलिए आया हूं आपको अपने हाथ की लकीरें पढ़वाने . सुनकर बोले ओ यह बात है दिखाओ अपना हाथ. मैंने पोंछ कर अपना हाथ पतलून से पसार दिया उनके सामने.
कुछ देर शांत रहकर बोले हाथ तो तुम्हारा बहुत साफ नजर आ रहा है पर लकीर धुंधली क्यों दिख रही है. मैं बोला क्या करूं रोज आधा साबुन घिस जाता है इन हाथों को धोने में उसी का परिणाम है कि लकीरें भी साफ हो रही है हाथों से.
मैंने सोचा कि अगर यूहीं धोता रहूंगा इन हाथों को तो कहीं एक दिन पूरी तरह साफ न हो जाए इस डर से रिस्क लेकर भी अा गया हूं आपके दर पे .कृपया कोई हो उपाय तो बताएं.
मित्र बोले तुमसे है मेरा दोस्ताना इसलिए तुमको में कोई गलत राय न दूंगा. यह कह कर उन्होंने बजाया सारेगामा पर यह गाना

बाबूजी धीरे चलना
प्यार में, ज़रा सम्भलना
हाँ बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं इस राह में
बाबूजी धीरे चलना

क्यूँ हो खोये हुये सर झुकाये
जैसे जाते हो सब कुछ लुटाये
ये तो बाबूजी पहला कदम है
नज़र आते हैं अपने पराये
हाँ बड़े धोखे हैं…

ये मुहब्बत है ओ भोलेभाले
कर न दिल को ग़मों के हवाले
काम उलफ़त का नाज़ुक बहुत है
आ के होंठों पे टूटेंगे प्याले
हाँ बड़े धोखे हैं…

हो गयी है किसी से जो अनबन
थाम ले दूसरा कोई दामन
ज़िंदगानी की राहें अजब हैं
हो अकेला है तो लाखों हैं दुश्मन
हाँ बड़े धोखे हैं..

.मेरी मुट्ठी को बन्द कर बोले छोड़ो जमाने को अपने मैं हो जाओ मस्त. न ढूंढो खुशी को  बाहर अपने अंदर जलाओ प्यार के दिए को.

  1.       @ ब्जेेेे

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020