लघुकथा

जंग

”उसकी कैंची पर जंग लग गया था. उसने कैंची को प्याज से रगड़कर कुछ मिनट तक छोड़ दिया, फिर साफ कपड़े से रगड़ दिया, जंग छूट गई. वह बहुत खुश हुआ.” मानवेश जी ने पढ़ा.

”लोहे की किसी चीज पर जंग लग जाए, तो उसको प्याज से रगड़कर कुछ मिनट तक छोड़ दीजिए, फिर साफ कपड़े से रगड़ दीजिए, जंग छूट जाएगी, लेकिन लॉकडाउन की इस मुसीबत का क्या करें! एक तो समय काटना मुश्किल, ऊपर से पूरे क्रॉफ्ट-कौशल को जंग लग जाएगी.” क्रॉफ्ट टीचर मानवेश ने खुद से कहा.

”मैं यह हरगिज नहीं होने दूंगा.” मानवेश ने मन-ही-मन संकल्प लिया.

लॉकडाउन के कारण अधिक बच्चों को तो बुलाया नहीं जा सकता था, इसलिए उसने अपनी सोसाइटी के पांच बच्चों को क्रॉफ्ट-कौशल सीखने के लिए आमंत्रित किया. स्कूल बंद, बाजार बंद, बाहर आना-जाना बंद, खेलना-कूदना बंद, यह तो किया ही जा सकता है, बच्चों ने सोचा और सीखने आ गए.

”बच्चो, हम कुछ नया बनाना सीखेंगे, बोरियत भी विदा हो जाएगी और शायद कुछ आमदनी का जरिया भी बन जाए. अपनी-अपनी रुचियां बताओ.” मानवेश जी ने कहा.

”सर, मुझे मास्क बनाना सीखना है. मेरे पास मशीन है, सूती कपड़ा भी है. आजकल मास्क बिक भी जाएंगे.” दीनू बोला.

”बहुत अच्छे, तुम क्या सीखना चाहते हो मोनू?”

”सर, सामुदायिक भवन में चाक लगा हुआ है और सांचे भी हैं, मुझे दीपक और मूर्तियां बनाना सीखना है.”

”वाह! सोनू की क्या योजना है?”

”सर, मुझे तो आप चित्रकारी सिखा दीजिए.”

”रॉनी की क्या इच्छा है?” रॉनी की ओर मुखातिब होकर मानवेश जी बोले.

”सर, सामुदायिक भवन में खिलौने बनाने की मशीन है, मुझे तो आप खिलौने बनाना ही सिखा दीजिए.”

”हितेश क्या सीखना चाहता है?”

”सर, मुझे तो साहित्य-लेखन में रुचि है. आपका थोड़ा-सा मार्गदर्शन मिल जाएगा, तो मैं आपका शुक्रगुजार रहूंगा.”

”चलो फिर ऐसा करते हैं कि कल से सामुदायिक भवन में ही डेरा जमा लेते हैं. मैं अनुमति ले लूंगा. कुछ सामान मेरे पास है वो मैं सबको अभी दे देता हूं, बाकी कुछ आप लोग ले आना, कल सुबह दस से बारह कक्षा लगेगी. मास्क लगाकर आना मत भूलना.”

”सर, हम दो गज दूरी का भी ध्यान रखेंगे और साबुन से अच्छी तरह हाथ धोने का भी.” हितेश का लेखन मुखर हो रहा था.

मास्क तो खूब बिकने ही थे लॉकडाउन के चलते-चलते नवरात्रे भी आ गए थे. दीपक और मूर्तियां हाथों-हाथ बिके, खिलौनों पर तो सोसाइटी के बच्चे ही लट्टू हो गए थे, चित्रकारी और साहित्य-लेखन वर्चुअल प्रतियोगिताओं में डिजिटल सम्मान पा रहे थे.

मानवेश जी ने अपने क्रॉफ्ट-कौशल को तो जंग लगाने से बचा ही लिया, बच्चों के दिमाग भी जंग लगने से बच गए. आमदनी और सम्मान ने सोने पर सुहागे का काम कर दिया था.

बचपन में पिता से मिली एक सीख ने ”कुछ-न-कुछ उपयोगी करते रहो, अन्यथा मस्तिष्क को जंग लग जाएगा” मानवेश जी को रास्ता दिखा दिया था.

चलते-चलते हम आपको यह भी बताते चलें, कि भाई सुदर्शन खन्ना जी को एक और डिजिटल सम्मान से सम्मानित किया गया है-

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “जंग

  • लीला तिवानी

    मानवेश जी ने कैंची, मस्तिष्क और क्रॉफ्ट-कौशल को जंग से बचाने का अत्यंत कारगर और जनोपयोगी रास्ता अपनाया. भाई सुदर्शन खन्ना जी बहुत-सी वर्चुअल प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता करके अनेक डिजिटल सम्मान से नवाजे जा चुके हैं. मानवेश जी और भाई सुदर्शन खन्ना जी को बहुत-बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं. हमारे पाठकों में से भी बहुत-से ऐसे रास्ते अपनाए होंगे. वे कामेंट्स में अपनी उपलब्धियां हमारे साथ साझा कर सकते हैं.

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