कविता

अबॉर्शन- एक विकृत…. सोच का

समाज में अपनी ,
विकृत मानसिकता को।
छुपाने के लिए,
अबॉर्शन करवाते हैं ।
कभी बेटों के लिए ,
कभी जायज- नाजायज ,
संबंधों के लिए,
मानववादी सोच का ,
अपहरण तक कर आते हैं ।
वे लोग……….?
अपनी ऐसी विकृत सोच का
अबॉर्शन क्यों…..नहीं करवाते हैं?
देश की अर्थव्यवस्था की ,
जो धज्जियां उड़ाते हैं ।
अपने मतलब के लिए ,
षडयंत्र रचाते हैं ।
भ्रष्टाचार फैला कर ,
देश को ही खा जाते हैं।
धर्मों के नाम पर,
 लड़ा जात- पात फैलाते हैं।
मजबूर बेसहारों पे जुल्म ढाते हैं।
 झूठ -फरेब से बाज नहीं आते हैं।
ऐसी सोच का ,
अबॉर्शन क्यों …….नहीं करवाते हैं?
समाज और देश के ,
वे लोग ….……….?
जो सभ्यता को ,
लज्जित कर जाते हैं ।
ना समाज का ,
ना देश का भला कर पाते हैं।
अपनी विकृत सोच से नकारात्मकता बढ़ाते हैं ।
सत्य को हराकर
झूठ का राग गाते हैं ।
ऐसे विकृत……. लोगों का
हम देश से …………….!
अबॉर्शन क्यों नहीं करवाते हैं?
स्वरचित रचना
— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com