कविता

पोस्ट कार्ड

वो भी क्या ज़माना था —
जब सिर्फ पांच पैसे का एक पोस्ट कार्ड ,
इंसानी रिश्तो का –
कितना पक्का आधार था,
मांमा चाचा ताऊ मौसा ,बिछड़ा दोस्त सहेली.
सबके पोस्ट कार्ड का–
बैचेनी से रहता इंतज़ार था,
सब डाकिये की राह देखते थे –
चिट्ठी आई है सुनने को आतुर रहते थे,
और लो चिट्ठी आ गई —-मामाजी की
घर में हो गई चहल पहल रौनक भरी,
माँ बोली ‘कैसा है मेरा भैय्या” कब आरहा है,
मुन्ना बोला मेरे लिए प्यारा मांमा
खिलौना भी तो ला रहा है?
अबके मैं मामा संग चिड़िया घर जाऊँगा ,
आइस क्रीम भी खाऊंगा,
कितनी मासूमियत ,कितनी ख़ुशी,
सारे घर में एक नयी ख़ुशी भरी ज़िंदगी,
सिर्फ एक पांच पैसे के पोस्ट कार्ड से
वो भी जो तीन दिन पहले लिखा गया,
और आज
जब चाहो जहाँ चाहो जिस से चाहो,
तुरंत बात करने के लिए मोबाइल हाज़िर है,
पर नहीं है तो वैसा सम्मान वो प्यारऔर दुलार,
जिसका हमको बचपन में रहता था इंतज़ार –
अब तो इस तकनीकी युग में
बेचारा ‘पोस्ट कार्ड’ कहीं खो गया है,
हर बच्चा “रीचार्ज” का दीवाना हो गया है,
–जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845