कविता

महकने लगी मलिका

बनी दिवाली दीपों की मलिका
ख़ुश मिजाज़ दिलों को
रोशन करने आती है, यह मलिका चाहती है
रोशन रात में मुझे बुलाना
दुल्हन की तरह मुझे सजाना।
कुबेर से भरी हुई यह मलिका
हुस्न में सिमटी हुई मलिका
राहों में इसके फूल बिछाने को
दिल करता है।
बड़ी इतराती है यह मलिका
कहानी ख़ूब सुनी इस मलिका की…..।
कहते हैं रघुनन्दन को
घर ले कर आई यह मलिका
अमावस्या की घनेरी रात में
बन कर रोशनी उभरी मलिका।
इसकी मुँह दिखाई में लेते हैं…..धनतेरस को सोना – चांदी
सीता के सोलह श्रंगार
बन कर आई मलिका।
लखन जैसा भाई था साथ तो
उर्मिला के सोलह श्रगार को
कैसे ना चमकाती ये
रघुनन्दन को देख
माँ की आंखों में
हीरे-मोती बन कर आयी यह मलिका।
कमल के फूल पर विराजमान
गुलाब की खुशबू बन कर
महकने लगी है मलिका।
— सीमा राठी

सीमा राठी

सीमा राठी द्वारा श्री रामचंद्र राठी श्री डूंगरगढ़ (राज.) दिल्ली (निवासी)