लघुकथा

और संघर्ष चल पड़ा!

”संघर्ष, संघर्ष, संघर्ष—-जिधर नजर जाती है संघर्ष ही संघर्ष!” भयभीत श्यामली चिल्लाने लगी.

”संघर्ष कौन नहीं करता?” एक आवाज आई. श्यामली चौंक पड़ी. इधर-उधर देखने लगी. कोई दिखाई नहीं दिया, पर ध्वनि मुखर थी.

”संघर्ष के बिना जीना भी कोई जीना है! संघर्ष ही तो असली चुनौती है और आगे बढ़ने और जीतने का संबल भी!”

”पर संघर्ष की सखावत करने वाले तुम हो कौन?” यह तो बताओ.

”संघर्ष नाम है मेरा. कभी सूरज को उगते हुए देखा है?”

”रोज ही देखती हूं.”

”क्या उसे एक-एक किरण को आभासित करने का संघर्ष करते नहीं पाया?”

”अहसास तो मुझे भी हुआ है!”

”यही संघर्ष एक बीज को भी करना पड़ता है. कैसे मिट्टी के एक-एक कण को तोड़ते हुए अपनी ऊर्जा को प्रस्फुटित कर अंकुर और फिर पौधा-पेड़ बन जाता है.”
श्यामली मूक हो सुनती रही.

”धरती मां का संघर्ष तो देखा ही होगा. उनके संघर्ष को तुम्हीं लोगों के धैर्य का नाम दिया है. चांदनी रात में मकड़ी को जाला बुनते देखो, चींटियों को चीनी का दाना या अखरोट का चूरा बिल में ले जाते देखो, इल्ली को प्यूपा और फिर प्यूपा को तितली बनते देखो, संघर्ष की भूमिका ही नजर आएगी. संघर्ष से ही सुमन में सुगंध और सुरम्यता आती है, वायु पवन बन जाती है, बड़ी-बड़ी चट्टानों के अवरोधों से संघर्ष करके जल अपना रास्ता बना लेता है, चिड़िया का बच्चा उड़ान भरने लगता है. बिना संघर्षण के तो बिजली भी उत्पन्न नहीं हो सकती, और तो और संघर्ष को तो खुद संघर्ष किए बिना चैन नहीं पड़ता.”

संघर्ष के तनिक विराम पर श्यामली अचंभित थी.

”अच्छा तो मैं चलता हूं.”

”कहां?” श्यामली ने साहस करके पूछ ही लिया.

”संघर्ष का संघर्ष जारी है.” संघर्ष का जवाब था.

और संघर्ष चल पड़ा था संघर्ष करने.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “और संघर्ष चल पड़ा!

  • लीला तिवानी

    बाहरी संघर्ष की भयावह सूरत तो हमें डराती है, पर असली संघर्ष तो हमारे भीतर और प्रकृति के कण-कण में हर समय चल रहा है, उसका हमें पता ही नहीं चलता. वास्तव में संघर्ष ही जीवन है. संघर्ष ही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, संबल बनता है और सफलता भी दिलाता है. संघर्ष के बिना हम निष्क्रिय हो जाएंगे.

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