सामाजिक

डर के आगे जीत

यह सही है कि कोरोना संकट के बीच स्कूलों का खुलना डरा रहा है।परंतु थोड़ी तसल्ली भी है कि जूनियर सेक्शन को अभी इससे अलग ही रखा गया है। नौवीं से लेकर ऊपर तक की कक्षाओं को कड़े नियमों के अनुसार तमाम पाबंदियों के साथ पचास फीसदी बच्चों को ही अनुमति के साथ विद्यालय खोलने की इजाजत दी गई।थर्मल स्क्रीनिंग, मास्क,सेनेटाइजर, दो गज दूरी जैसी सख्त हिदायतें भी जारी किया गया है।
यह भी सही है कि डर सभी को है चाहे माता पिता हों या स्कूल स्टाफ।लेकिन जीवन भी चलाना है।बच्चों की जिंदगी के साथ उनका भविष्य भी बनाना है।इतने दिनों की पाबंदियों ने ही सब कुछ छिन्न भिन्न करके रख दिया है।
आखिर कब तक बच्चों को घर में कैद रखा जा सकता है।उनकी शिक्षा, उनके भविष्य के अलावा स्कूल स्टाफ की जीविका का भी तो सवाल है।इतने दिनों में ही वे भूखमरी की हालत में पहुंच गये हैं।
कुल मिलाकर बच्चों के भविष्य और स्कूल स्टाफ की परेशानियों को देखते हुए इसे गलत कहना अनुचित ही होगा। बड़े बच्चों का एक भी अभिभावक आलोचना चाहे जितनी कर ले पर वो अपने पाल्य का एक वर्ष बरबाद करने के लिए कतई राजी नहीं है।यदि ऐसा होता तो बच्चे स्कूलों में पहुंच ही नहीं रहे होते।
समय और परिस्थिति के अनुसार चलना और आगे बढ़ना मजबूरी है।क्योंकि जीवन की गाड़ी अपनी गति से ही बढ़ती रहेगी।बाजारों में भी भीड़ कम नहीं है।रोजमर्रा के सारे काम लगभग चलने लगे हैं।
ऐसे में जिन बच्चों को लेकर हम डर रहे हैं।क्या वे स्कूल खुलने के पहले तक बाहर नहीं निकल रहे थे? आजकल के बच्चे वैसे भी हमसे अधिक स्मार्ट हैं।
फिर इस बात कि कोई गारंटी भी तो नहीं है कि कोरोना कब हमारा पीछा छोड़ेगा।ऐसे में बच्चों को बलि का बकरा बनाना बुद्धिमानी नहीं है।माता पिता भी बच्चों को सावधानी बरतने की हिदायतें देते हुए स्कूल भेजें।क्योंकि इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि हम जब बाहर निकल रहे हैं तो हम कोरोना वाहक बनकर परिवार को संक्रमित नहीं करेंगे।
अच्छा है कि अनावश्यक डर से बचें और सावधानी के साथ बच्चों को स्कूल भेजें।सिर्फ़ सरकार की आलोचना करने से न तो हम अपनी जरूरतों को पूरा कर पायेंगे और न ही बच्चों का भविष्य सुरक्षित रख पायेंगे।
अच्छा होगा सरकार की आलोचना करने वाले यह विचार करें कि सब कुछ पूरी तरह कब तक बंद रखा जा सकता है?क्या हम सब चार छ: माह की पूर्ण बंदी झेल पाने में सक्षम हैं?
इसलिए समय के साथ ,परिस्थिति के अनुसार ही आगे बढ़ने में ही बुद्धिमानी है।क्योंकि डर के आगे जीत है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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