लघुकथा

घंटी

आज ”श्वेता प्रकाशन” का शुभारंभ होने वाला था. तन से तो श्वेता सभी आवश्यक प्रबंध करने में लगी हुई थी, पर मन से वह सालों पुरानी स्मृति में खोई हुई थी.

”मैडम आप शाम को मेरे घर आ जाइएगा, उपन्यास-प्रकाशन से संबंधित सभी बातें वहीं आराम से हो जाएंगी.” एक प्रकाशक ने कहा था.

श्वेता को लोकप्रिय सिने तारिका वहीदा रहमान के जीवन का एक किस्सा याद आ गया था. वहीदा रहमान ने फिल्मी कैरियर के प्रारम्भ में ही अपने विचारों से मेल न खाने के कारण एक प्रख्यात निर्देशक के शूटिंग पर झीनी ड्रेस पहनने के निर्देश का कड़ा विरोध किया था. वहीदा रहमान की प्रतिभा के सामने निर्देशक को झुकना पड़ा था. श्वेता को भी अपनी लेखन-प्रतिभा पर पूरा विश्वास था.

”दिनेश यह झालर उधर नहीं, इधर अच्छी लगेगी.” मनोयोग से वह निर्देश भी देती जा रही थी.

मी टू कैम्पेन में उसने ऐसे निर्देशकों, प्रकाशकों, ऑफिस के बड़े अफसरों के अनेक दुर्दांत किस्से पढ़े थे. वह अपने उपन्यास की पांडुलिपि लेकर चुपचाप निकल आई थी.

”मैडम उद्घाटन के लिए आने हेतु ममी जी घर से निकल रही हैं, कुछ बोलना है क्या?” हितेश ने उसके विचारों की तंद्रा भंग करते हुए कहा.

”नहीं, बस उनके आते ही उनसे उद्घाटन करवाना है, ध्यान रखना, कोई कसर नहीं रहने पाए.”

ममी ने ही तो उसको सचेत करते हुए था- ”मेरी हीयरिंग एड का कोई सेल कमजोर होने लगता है, तो घंटी बज जाती है. इसी तरह जीवन में जब भी खतरा होता है, घंटी बज जाती है. बस घंटी को सुनकर सचेत होते रहना ही जिंदगी है.”

उसी घंटी को सुन-पहचान कर साहसी बनने का सुपरिणाम है उसका ”श्वेता प्रकाशन”.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “घंटी

  • लीला तिवानी

    वहीदा रहमान का किस्सा————-
    लोकप्रिय सिने तारिका वहीदा रहमान ने फिल्मी कैरियर के प्रारम्भ में ही CID फिल्म (1956) में राज खोसला जी ने, जो एक प्रख्यात निर्देशक थे, वहीदा रहमान के लिये एक झीनी ड्रेस शूटिंग पर पहनने के लिये दी. गीत था “कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना” पर वहीदा जी ने उस ड्रेस को पहनने के आदेश को अस्वीकार कर दिया. शूटिंग रुक गयी, निर्देशक महोदय भी जिद्द पकड़े हुए थे कि यही ड्रेस पहननी होगी अन्यथा फिल्म से बाहर कर दूंगा, धमकी दे रहे थे कि कैरियर समाप्त कर दूंगा, कहीं काम न मिलेगा. कुछ लोगों ने वहीदा जी को समझाया कि बहुत बड़ा निर्देशक है, कैरियर समाप्त कर देगा, कहीं काम न मिलेगा. पर वहीदा जी ने कहा मेरी फिल्म मेरा परिवार ही नहीं समस्त देश के अन्य लोग भी परिवार सहित देखेंगे. उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा. अपने प्रशंसकों से, परिवार वालों से मैं कैसे नजर मिला पाऊंगी? कैरियर समाप्त होता है तो हो जाय पर गलत काम न करूंगी, अश्लीलता मुझे स्वीकार नहीं है. अब सभी वहीदा जी की प्रतिभा से प्रभावित थे, इसलिये अंत में अनेक लोगों के कहने पर उन निर्देशक महोदय को ही झुकना पड़ा. वहीदा जी ने अपने नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया.

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