लघुकथा

फाख्ता

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन था. सुबह-सवेरे से बधाई-संदेश आ रहे थे. शरद ऋतु के आगमन का सुहावना संकेत जो था! सब लोग शरद पूर्णिमा की सुनहरी यादों में खोए हुए थे.

चंचल का संदेश शरद पूर्णिमा के दिन छत पर पसंदीदा पकवान लेकर दोस्तों-अपनों के संग सारी रात जाग कर बतियाना, नए नए खेल खेलना, गप्पें मारना, हंसना-हंसाना, रात भर धमाल-मौजमस्ती, रिश्तों में प्यार का रस घोलने वाले कोजागरी को याद कर रहा था.

सुदर्शन ने शरद पूर्णिमा पर प्यारा-सा बाल गीत लिखकर अमृतमई खीर को याद किया था. यह भी सच है, कि अब न वे दिन रहे न ही लोगों के रिश्तों में वह अमृत-सा अपनापन. चंदा का अमृत ही कौन शुद्ध रह पाया है! उसे भी प्रदूषण ने प्रदूषित कर दिया है. न चंदा मामा से लगाव है, न अपने आप में व्यस्त माता के पास चंदा मामा की रिश्तों ने जुड़ाव लाती कहानियां हैं. सच में वे दिन फाख्ता हो गए.

हमें भी पंडित पुरुषोत्तम के घर की छत पर झीने कपड़े से आवृत्त खीर का बड़ा-सा पतीला याद आ गया, जिसके चारों ओर बैठकर हम मूंगफली और पिस्तों के बोरे छीलते हुए कीर्तन गाते-सुनते और सुबह खीर के साथ मूंगफली और पिस्तों का प्रसाद पाते थे.

आने-जाने, भजनों-कीर्तनों, सैर-सपाटों के सिलसिले चलते रहे, दिन मजे-मजे में चलते रहे, कि कोरोना ने दस्तक दे दी. आने-जाने, भजनों-कीर्तनों, सैर-सपाटों के वे दिन फाख्ता हो गए. अब तो बस लॉकडाउन-मास्क-दो गज दूरी की बातें शेष रह गई हैं. और फाख्ता! फाख्ता भी न जाने कहां छिप गई है. बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी है.

तभी “घु घु” की आवाज़ निकालने वाली फाख्ता आ गई.

”लो मैं आ गई हूं, अब लॉकडाउन-मास्क-दो गज दूरी से मुक्ति मिल जाएगी.” “घु घु” की आवाज़ वाली फाख्ता मानो उम्मीद की किरण चमका रही थी.

फाख्ता हुए आने-जाने, भजनों-कीर्तनों, सैर-सपाटों के स्वर्णिम दिनों की स्मृति मन को मदमस्त कर रही थी. ऐसे में ही तो है शरद पूर्णिमा का असली आनंद!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फाख्ता

  • लीला तिवानी

    सचमुच वो प्यारे-प्यारे दिन फाख्ता हो गए, पर उम्मीद अभी बाकी है. फाख्ता कबूतर परिवार का एक सुन्दर पक्षी है, इसे भारत में कई नामों से जाना जाता है जैसे कि पर्की, चित्रोक, फाख्ता, घुघु पक्षी इत्यादि, परंतु इसका सबसे प्रचलित नाम फाख्ता है, यह “घु.. घु” की आवाज़ निकलता है, इसीलिए इसका नाम घुघु पक्षी भी पड़ गया है. यह एक सुंदर और शोर करने वाला पक्षी होता है. इसका वैज्ञानिक नाम Streptopelia chinensis है. यह सुंदर पक्षी लगभग सारे भारतीय उपमहाद्वीप पर पाया जाता है, कुछ पक्षियों को ले जाकर ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका में भी छोड़ा गया है इन जगहों पर भी इस पक्षी की संख्या बढ़ती जा रही है. फाख्ता पक्षी को आप अक्सर जमीन पर चलते हुए देख सकते हैं, यह जमीन पर पड़े हुए बीज और दाने खाना पसंद करता है, कभी कभी छोटे कीट पतंगे भी खा लेता है.

Comments are closed.