गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

मुझको ए हमदम मेरे तुमसे है बस इतना गिला
जब मिला मुझसे तू थोड़ा फासला रख के मिला
================================

चाहने वाले तुम्हारे हैं बहुत पर सोच लो तुम
इतनी शिद्दत से तुम्हें और कौन चाहेगा भला
================================

जाम क्या है ज़हर भी पी लूँगा हंसते हंसते मैं
शर्त इतनी सी है साकी अपने हाथों से पिला
================================

तुमको देखा तो यकीं आया मुझे इस बात का
तुम हो मेरी आजतक की सब दुआओं का सिला
================================

महसूस होते हो मुझे न होके भी तुम हर जगह
कब तलक चलता रहेगा ये अजब सा सिलसिला
================================

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com