कविता

दीवाली उसे भी मनानी है

दीवाली उसे भी मनानी है,
दीपक भी उसे जलाने है।
पिछ्ले साल न बिके थे दिये,
इस साल भी दुकान सजा ली है।
चका चौंध की इस दुनिया में,
कौन पूछता है मिट्टी के दीपो को।
सब मस्ती मे झूम रहे है,
कौन पूछेंगा फिर इन गरीबो को।
बीच बाज़ार मे है दुकान उसकी,
वह तो अरमान सजाये बैठा है।
आशा है बिकेंगे दीप भी उसके,
वह तो टकटकी लगाये बैठा है।
दीवाली उसे भी मनानी है।
दीपक भी उसे जलाने है।।
— अभिषेक शुक्ला

अभिषेक शुक्ला

सीतापुर उत्तर प्रदेश मो.न.7007987300 नवोदित रचनाकार है।आपकी रचनाएँ वास्तविक जीवन से जुडी हुयी है।आपकी रचनाये युवा पाठको को बहुत ही पसंद आती है।रचनाओ को पढ़ने पर पाठक को महसूस होता है कि ये विषयवस्तु उनके ही जीवन से जुडी हुयी है।आपकी रचनाये अमर उजाला, रचनाकार,काव्यसागर तथा कई समाचार पत्रो व पत्रिकाओ मे प्रकाशित हो चुकी है।आपकी कई रचनाये अमेरिका से प्रकाशित विश्व प्रसिद्ध मासिक पत्रिका "सेतु "मे भी प्रकाशित हुई है।