झाँसी की महारानी लक्ष्मी बाई उर्फ़ मनु, जो अंग्रेजों से लोहा लेने वालों में प्रथम पंगत की स्वतंत्रता सेनानी, यहाँ तक की वे ‘मर्दानी’ कही जाती थी । तभी तो कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी, वह झाँसी वाली रानी थी’ आज भी महत्वतम स्थान रखती है !

वहीं 1917 के 19 नवम्बर को जन्म तथा 1984 के 31 अक्टूबर को पद पर रहती हुई प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ‘शहीद’ हो गयी थी । इस दिन उनके स्वयं के अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दिए । इसके कारणों में तथ्य या कथ्य जो हो, परंतु किसी भी देश के प्रधानमंत्री की हत्या उनके स्वयं के अंगरक्षकों द्वारा ही हो जाना अक्षम्य विश्वासघात है । इस हत्या के बाद देशभर में जिसतरह से सिख-धर्मावलंबियों के साथ मर्मान्तक घटना घटित किये गए, यह संत्रास और पीड़ादायक था, फ़ख़्त इस बिनाह पर कि हत्यारे अंगरक्षक सिख-धर्मावलंबी थे !

यह जानते हुए भी कि हत्या सहित आततायी कार्य किसी भी धर्म के उत्सवी चेहरे नहीं हैं। पिता पं. नेहरू के प्रधानमन्त्री पद पर निधन के तुरंत बाद उनकी दुहिता ‘प्रियदर्शिनी इंदू’ अगर प्रधानमन्त्री बनती, तो कोई और बात थी, किन्तु यहां इंदु उर्फ़ इंदिरा गाँधी 2 वर्ष बाद व शास्त्री जी के निधन के बाद ही प्रधानमन्त्री बनी। वर्ष 1971 में पाकिस्तान से टक्कर लेकर लाहौर तक पहुंची भारतीय सेना के साथ-साथ बांग्ला देश की आज़ादी इंदिरा गाँधी के बूते मिली और तब भारतीयों ने ‘लौह महिला’ नामार्थ विभूषित किया ।

परंतु 1975 के आपातकाल, जिनमें विरोधियों को जेल में डालने और प्रेस सेंसरशिप आदि कृत्य से इस प्रियदर्शिनी की सनकी व हिटलरी अक़्स भारतीयों के सामने आई । पुत्र संजय गाँधी की ‘नसबंदी’ अवधारणा ने आग में घी का काम किया, फिर 1977 के लोक सभा चुनाव में देश ने उन्हें ‘हार’ का सबक दिए ।