कहानी

शिखर

माला जी, आज आप कला के शिखर पर हैं। कृपया अपने चाहने वालों को भी बताएं।कैसा लगता है आपको इस शिखर पर पहुंचकर?अच्छा लगता है।आपकी कलाकृतियां सबको इतनी पसंद आती हैं। मैं तो आपका सबसे बड़ा चाहने वाला हूँ।पत्रकार ने मुस्कुराते हुए कहा।जी,आप सभी कला पारखियों का बहुत-बहुत धन्यवाद।
अखबार में छपे माला के इंटरव्यू को देख कर मन भावुक हो उठा।मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।काश मैं माला के प्यार का सम्मान करता तो आज कह कर वह चुप रह गया था।ओह माला! सच में तुमने अपनी मेहनत से खुद को कला के आसमान पर पहुंचा दिया। तुम चमक रही हो। काश मैं भी तुम्हें बधाई दे सकता, तुम्हारा अपना धवल। अब तो मुझें खुद पर शर्म आती हैं।मैं तुम्हारा प्यार स्वीकार क्यों नहीं कर सका था?तुम्हें अपना नहीं सका था।तुम तो हमेशा के लिए मेरी हो जाना चाहती थी।मैं ही अभागा था।यह मेरा दुर्भाग्य था जो तुम्हारे लाख चाहने पर भी मैं टस से मस नहीं हुआ था।
तुम्हारे आखिरी शब्द मुझें आज भी याद हैं। तुमने कहा था धवल तुम मुझें ठुकरा कर बहुत पछताओगे। तुम कितना सही थी,माला? काश—-।
फोन पर बधाईयों का अंबार लगा हुआ था। सब अपनी- अपनी तरह से बधाई दे रहे थे।कोई कह रहा था, माला जी आपकी बनाई कलाकृति मैं हमेशा अपने सामने सजा कर रखता हूँ। सुबह- शाम उसे निहारता रहता हूँ।कोई कह रहा था माला जी, आप की कलाकृति तो मेरे लिए प्रेरणा हैं।जीवन में मुझें बेहतर करने की सीख देती हैं। मुझें अपनी कला के कारण चारों तरफ से बेशुमार प्यार और सम्मान मिल रहा था।
एक चाहनेवाले के सवाल ने मुझें झकझोर कर रख दिया था। माला जी, आपके संस्कार तो उच्च कोटि के हैं। आपके माता- पिता ने आपको खूब संवारा हैं।
माता-पिता, काश मैं सभी को कह पाती कि मुझें तो आज तक यह भी पता नहीं है कि मेरे माता-पिता कौन हैं? जब से होश संभाला खुद को अनाथालय में पाया था।हर दो-चार सालों में मेरा घर बदलता रहा था।कभी इस अनाथालय कभी उस।अब तो मुझें याद भी नहीं है कि कितने बदलाव मेरी जिंदगी में आए थे?ओह उन दिनों को याद करके मैं आज भी सिहर उठती हूँ।वे दिन बड़े ही घुटन भरे थे। मैं उन अतीत के दिनों को अपनी जिंदगी से निकाल फैंकना चाहती हूँ। हमेशा-हमेशा के लिए।मैं उस अतीत को याद नहीं करना चाहती,कभी नहीं।
भला हो सुधा जी का,वह एक फिर से अतीत में खो गई। जब सुधा जी हमारे अनाथ-आश्रम में आई थी।उनके पति की पुण्यतिथि थी।वह पति की पुण्यतिथि पर आश्रम में कपड़े बांटने आई थी। सभी के लिए ढेर सारे रंग-बिरंगे कपड़े लिए। देखकर ही मन खुश हो गया था।रंगीन कपड़े हमारे लिए, हम सभी एक साथ चिल्लाए थे। हमें बड़ी जोर से डाँटा गया था। अधिकारियों द्वारा ठीक से खड़े रहने की सलाह दी गई थी। हम चुपचाप अपना नंबर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मन उत्साह से भर रहा था।सभी बच्चों को रंगीन कपड़े मिले थे। अधिकारी सुधा जी का आभार प्रकट कर रहे थे।क्योंकि आश्रम को कुछ नकदी भी दी जा रही थी ताकि बच्चों को विशेष सामग्री खाने को दी जा सके।
सुधा जी आश्रम के मुख्य अधिकारियों से कह रही थी। वह एक लड़की को गोद लेना चाहती हैं। वह अकेली थी,उनकी उम्र भी बढ़ रही थी।वह चाहती थी कि कोई उनकी तथा घर की देखभाल कर सके। और घर के कामकाज में उनका सहयोग करें।वह इसके लिए अनाथ- आश्रम को एक बड़ी राशि का सहयोग भी तो प्रदान कर रही थी।बड़े सोच- विचार के बाद अधिकारियों ने मेरे नाम का सुझाव रखा था।माला ठीक रहेगी,सुधा जी।ओके कह कर उन्होंने सारी कागज कार्यवाही पूरी कर दी थी।
मुझें अब नई मंजिल का सफर तय करना था। उस समय मैं बारह वर्ष की थी। दुबली- पतली कमजोर हाड़-मास वाली।अंदर ही अंदर में बड़ी भयभीत थी। मेरे लिए सब कुछ नया था। अनजान वातावरण, पर मैं गलत थी।
सुधा जी का प्यार भरा हाथ उनका स्पर्श सभी कुछ कमाल का था।उनका कोमल स्पर्श मुझें अन्दर तक छू देता था। उन्होंने मुझें पढ़ाना- लिखाना शुरू कर दिया था।ये अवसर था मेरे लिए खुद को सवारने का,आगे बढ़ाने का। और मैं जल्दी सीख गई।सुधा जी मुझसे अक्सर पूछती थी। तुम जिंदगी में क्या करना चाहती हो? क्या बनना चाहती हो?
मैं संक्षिप्त-सा जवाब दे देती थी कुछ नहीं मैडम।मुझें रंग बहुत पसंद हैं।लाल,पीले,हरे रंग।वह हँस पड़ी थीं,अच्छा तुम्हें रंग पसंद हैं तो मेरी शर्मिली बेटी चित्रकार बनाना चाहती हैं। मैं शर्म से कुछ ना बोली सकी थी।
मैडम ने मुझें इतना कुछ दिया था। मेरा जीवन सँवार दिया था। इन्हीं के कारण आज मैं समाज की मुख्यधारा से जुड़ी थी। वरना पता नहीं सोच कर ही मेरा मन बैठ जाता था। मन ही मन भगवान से प्रार्थना करती कि मेरी मैडम हमेशा मेरे साथ रहे। वही तो मेरी भगवान हैं।
माला सुनो यह हैं जाने-मानें चित्रकार। यह तुम्हें चित्रकारी करना सिखाएंगे। तुम रंगों से खेल सकोगी।और धवल जी यह है मेरी बेटी माला। इसे रंग बहुत पसंद हैं।आप चिंता ना करें। मैं पूरी कोशिश करूंगा—-।
धीरे-धीरे ही सही मैं खूब बढ़िया चित्र बनाने लगी।धवल का साथ मुझें बहुत अच्छा लगता था।मैं जवानी की दहलीज पर बढ़ रही थी।धवल भी एक होनहार युवक था।हमारी नजदीकियाँ बढ़ रही थीं। चित्रों में रंग-बिरंगे भरते-भरते कब हम एक- दूसरे की जिंदगी में रंग भरने लगे पता ही नहीं चला?मेरा मन हमेशा प्यार के रंगों से भरा रहता था।इसमें प्यार का रंग बढ़ता ही जा रहा था।धवल का साथ मैं हमेशा के लिए पा लेना चाहती थी।
बस कही दिक्कत थी तो धवल की संकीर्ण सोच। हम एक- दूसरे के साथ रहने की कसमें खा चुके थे। सुधा जी का स्वस्थ भी अब लगातार गिर रहा था। वह मेरा घर बसा देना चाहती थी। जब उन्हें धवल और मेरे रिश्ते के बारे में पता चला तो वह एकदम खिल गई। उन्हें रिश्ता मंजूर था। वह मेरे लिए बहुत खुश थी। वह अब जल्दी से जल्दी मेरे हाथों को पीला कर देना चाहती थी। उन्होंने धवल से अपने माता-पिता को बुलाने के लिए कहा।
वह धवन के माता- पिता से मिली।पर उनका मन बहुत व्यथित था। वह कुछ बोल नहीं रही थी। बस इतना ही कहा था कि तुम्हें धवल से भी अच्छे लड़के मिल जाएंगे। पर मैं धवल से एक बार इस विषय में बात करना चाहती थी।
माला: धवल- क्या तुम्हें ये रिश्ता स्वीकार नहीं है। तुम तो मुझसे बहुत प्यार करते हो। फिर क्या हुआ ?तुमने तो मेरी जिंदगी में हजारों रंग भर दिए थे। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।
धवल:माला- तुमने मुझें पहले क्यों नहीं बताया कि तुम एक अनाथ हो? तुम सुधा जी की बेटी नहीं हो। तुम्हें तो अपनी जात-पात का भी पता नहीं हैं।मैं अपने परिवार में ऐसी लड़की के साथ नहीं रह सकता।जिसका कोई पता ठिकाना नहीं हैं।अब हमारे रास्ते अलग-अलग हैं,हमेशा- हमेशा के लिए।
माला- उस व्रज-पात की पीड़ा सह गई थीं। कुछ ही दिनों के बाद सुधा जी भी चल बसी। वह टूट गई थीं पूरी तरह से। सारा दिन रंगों में खोई रहती थीं।एक से एक कलाकृति बनाई।हर तरफ उसका ही नाम था।वह कला के शिखर पर थीं।पर बिल्कुल अकेली।

राकेश कुमार तगाला

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