सामाजिक

अन्न का अपमान न करें

इस विश्व में जितने भी जीवित प्राणी है ,पशु पक्षी है या मनुष्य है | हर जीव परिश्रम करता है तो केवल अपनी उर्जा को मिटाने के लिए | अपनी भूक को दिलासा दिलाने के लिए | व उसके लिए भोजन की अति आवश्यकता होती है | अन्न ही वह पदार्थ है जिसे ग्रहण करने से हमें संतुष्टि मिलती है | चाहे वह कोई भी प्राणी हो ,शाकाहारी हो या मांसाहारी हो | इस पूरे ब्रम्हांड में ऐसा कोई जीव उपस्थित नहीं जिसे अन्न प्रिय ना हो | इसी अन्न को प्राप्त करने के लिए हर मनुष्य कठिन परिश्रम करता हैं | इसी पेट की उर्जा के कारण कहीं लोग छोरी करते हैं | व कही सारे शुभ ,अशुभ कार्य केवल अपनी उर्जा की संतुष्टि के लिए कीए जाते है | कहीं सारे मनुष्य है जिन्हें बड़ी ही सरलता से अन्न प्राप्त हो जाता है | और कहीं सारे लोग हैं जो दिन रात कठिन परिश्रम करते हैं ताकि उन्हें दो वक्त की रोटी नसीब हो |

भारत में भूखे लोगों की तादाद लगभग 20 करोड़ से ज्यादा है | भारत की आबादी का लगभग पांचवा हिस्सा हर दिन भूखा सोने पर मजबूर है | व इसी कारण कहीं सारे लोग अपनी प्राण तक त्याग देते हैं | भाग्यवान है वह लोग जीने दो वक्त की रोटी नसीब होती है |परंतु जो कोई भी व्यक्ति अन्न का अपमान करता है वह सबसे बड़ा दरिद्र है | भोजन में स्वयं मां अन्नपूर्णा विराजमान होती है | और उसमें कमी ढूंढना बहुत ही गलत बात है | भोजन का व भोजन बनाने वाले का दोनों का ही अपमान करना मां अन्नपूर्णा अपमानित करने की समान है | और कमियां वही निकालते हैं जिन्होंने अपने वास्तविक जीवन में कभी कुछ अर्जित ना किया हो | क्योंकि यदि किया होता तो उसे हर व्यक्ति के कठिन परिश्रम का आभास होता | दिन दुनि रात चौगुनी माताएं कठिन परिश्रम कर अपने पूरे परिवार के लिए भोजन तैयार करती है | हर किसी का पसंदीदा व्यंजन बनाती है | चाहे कैसा भी मौसम हो क्यों ना हो कड़ी धूप हो , तेज़ बारिश हो या कडकडाति सर्दी हो वह अपना कार्य बड़ी ही निष्ठा व श्रद्धा से पूर्ण करती है | उन्हें कभी भी अपने कार्य से छुट्टी नहीं मिलती | फिर भी बिना कोई शिकायत किए अपने कार्य में मग्न रहती है | और इसे निष्ठा का अपमान करने वाले व्यक्ति वो है जिन्हें भोजन में कमियां नजर आती है | अपमानित इसिलिए करते हैं क्योंकि उन्हें बड़ी सरलता से सब कुछ मिल जाता है या प्राप्त हो जाता है | कदर सिर्फ वह मनुष्य करता है जिसने अपने जीवन में सब कुछ परिश्रम से अर्जित किया हो | क्योंकि कमियां ढूंढना बहुत ही सरल कार्य है ,परंतु परिश्रम करना उतना ही कठिन |

कहीं सारे मनुष्य है जो शादी ,सगाई या किसी भी अन्य कार्यक्रम में जाते हैं | तब वह अपनी थाल में एक साथ ही कही सारे पदार्थ अधिक मात्रा में भर लेते हैं | जबकि उन्हें पता होता है कि इतना सब कुछ वह ग्रहण नहीं कर पाएंगे | परंतु फिर अपनी संतुष्टि के लिए पूरा थाल सजा देते हैं | और यदि थाल में जगह ना हो तो भी वह उसे समायोजित कर देते हैं | व अन्न ग्रहण करते समय उन्हें आभास होता है | कि उनसे इतना अधिक भोजन नहीं खाया जाएगा | फिर वह संपूर्ण खाना कुल अपशिष्ट हो जाता है | थाल भरने से पहले हर किसी व्यक्ति को यह विचार अवश्य करना चाहिए कि कितना भोजन उनकी उर्जा मिटाने के लिए पर्याप्त है | व केवल उतना ही अपनी थाल में ले ताकि वह झूठा ना हो | और उसे भाहर फेकना न पडे | मेरी आप सभी से यही विनंती है कि हमेशा अपनी थाल में उतना ही भोजन ले जितनी आपकी भूख हो | और कभी भी अन्न का अपमान न करें क्योंकि यदि उसे ठोकर मार दी, तो भगवान ना करे कि जीवन में कभी ऐसी स्थिति जन्म ले की दो रोटी के लिए भी दरबदर भटकना पड़े | और फिर भी यदि आपको यह बाद झूठी लगती है | तो पूछिए उन गरीब लोगों से उन परिवारो से जो दो रोटी के लिए कितना तरसते व हैं उनकी जीवन में दो रोटी की क्या कीमत है | कृपया अन्न का अपमान न करें व उसे बरबाद भी न करें |

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा