लघुकथा

कहर

कहर
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कोरोना का कहर चरम पर था । अपनी मँडई के पीछे बने इकलौते कमरे में रामदीन बैठा टीवी पर समाचार देख रहा था । अभी कल ही तो उसे खबर मिली थी कि उसका फौजी बेटा जय जो कि उस समय लद्दाख में सीमा पर तैनात था चीनियों के कायराना हमले में शहीद हो गया था ।
गाँव में फौज के अधिकारियों की गहमागहमी बढ़ गई थी लेकिन इन सबसे बेखबर रामदीन की सूनी निगाहें अपने छोटे बेटे विजय की राह तक रही थीं जो दिल्ली से पैदल ही सिवान ( बिहार ) के लिए निकल पड़ा था । दो दिन हो गए थे जब उसने उससे अंतिम बार बात किया था और रोते रोते बताया था ,” बापू ! बस थोड़ी देर और बापू ! अब बनारस पहुँचने ही वाला हूँ । लेकिन बापू ! बड़े जोरों की भूख लगी है और खाने को कहीं कुछ नहीं मिल रहा है । हर तरफ बस कोरोना का खौफ ! तुम्हारी बहुत याद आ रही है बापू ! ” कहने के बाद उसने फोन काट दिया था । बड़ी देर तक रामदीन उसकी सिसकी को महसूस करता रहा । कितना लाचार और बेबस महसूस कर रहा था वह !
बड़ा बेटा देश के लिए शहीद हो चुका था और दो दिन से छोटे बेटे की भी कोई खबर नहीं । पत्नी जिरादेवी की असमय मृत्यु के बाद दोनों बेटों के अलावा उसके परिवार में कोई और नहीं था ।
अचानक टीवी पर दृश्य बदला । ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगा ।
टीवी पर एंकर चीख चीख कर खबर सुना रहा था ,” ये देखिए कोरोना का एक और शिकार ! दिल्ली से सिवान के लिए पैदल निकला युवक विजय बनारस पहुँचते पहुँचते अपनी जिंदगी की जंग हार गया ! ये देखिए उसकी तस्वीर ! ”
खटिये पर बैठा रामदीन उसपर ही पसर गया । दोनों बेटों के बाद अब उसकी साँसों ने भी उसका साथ छोड़ दिया था ।

राजकुमार कांदु
मौलिक
19/11/2020

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।