कविता

दिल की बस्ती

दिल की यह बस्ती
कभी लोगों से आबाद थी
आज तन्हा है
बड़ी रौनक थी
इस बस्ती में
न जाने किस की नजर लगी इसको
एक एक कर परिंदे उड़ने लगे
मकां खाली कर लोग जाने लगे
मेरा भी दिल
इस बस्ती से भर गया
लगता है खाली कर मकां
कहीं और ले लूं पनाह

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020