लघुकथा

यादों के झरोखे से- 28

पुनः आदेश बिंदु (लघुकथा)

नई-नवेली दुल्हिन शालू का ससुराल में पहला ही दिन था. कल ही तो दिन में रिंग सेरिमनी और फेरे हुए थे और रात में रिसेप्शन. उसके बाद विदाई और ससुराल में अनेक रीति-रिवाजों का निभाव. यह निभाव उसके लिए एम.बी.ए की परीक्षा से भी मुश्किल हो गया था, फिर भी वह विशेष डिस्टिंक्शन से पास हो गई थी. उससे भी अधिक उसकी सासू मां खुश हो गई थी, जो इस समय डिनर की टेबिल पर हंस-हंसकर सबको किस्सा सुना रही थीं.

”बाप-रे-बाप, इन पड़ोस की महिलाओं ने तो मेरे प्राण ही सुखा दिए थे.”

”लीजिए, किसकी हिम्मत हो गई, आपके प्राण सुखाने की!” एक ने कहा.

”देखो तो बहू से पूछ रही थीं, आजकल की लड़कियां तो रीति-रिवाजों को मानती ही नहीं, तू तो पढ़ी-लिखी होकर भी सब बड़े आराम से कर रही है.”

”फिर बहू ने क्या कहा?” सुनने वाले हुंकारों और चटकारों से लुत्फ़ ले रहे थे.

”रीति-रिवाज तो परिवार से जान-पहचान का मुख्य जरिया होते हैं, परिवार है तो हम हैं.” शालू ने कहा था.

”वो कैसे?” एक महिला ने पूछा था.

”अब देखिए न सबसे पहले घर की कुंडी खुलवाई, यह तो सीधे-सीधे घर से जान-पहचान का तरीका है. परसों ही हमारे पड़ोसी को अपना ताला खुलवाने के लिए एक ग़ॉर्ड को खास घर से बुलवाना पड़ा था.” शालू के यह कहने पर सब हैरान हो गई थीं.

”और वह अंगूठी ढूंढने-जीतने वाला खेल!” एक और महिला बोली थी.

”जी वह खेल सिखाता है, कि जीते कोई भी, जीत तो परिवार की ही होती है, सबकी जीत में खुश रहना सीखो.” शालू के यह कहते ही सब बगलें झांकने लगी थीं. शायद किसी ने ऐसा जवाब सोचा भी नहीं होगा.

”यह तो सही है, ऐसा तो हमने भी कभी नहीं सोचा था.” एक ने कहा, ”आगे क्या हुआ चाची जी?”

”आगे क्या होना था, अभी तो अनाज नापने की रस्म बाकी थी, उस पर भी एक महिला ने सवाल खड़ा कर दिया, उसका जवाब तो शालू खुद ही बताएगी, उसी की जबानी सुनिए. बहू, बताओ तो जरा.”

”जी ममी जी, यह तो बहुत स्पष्ट है. हमें हर चीज का सही-सही अंदाजा तो होना ही चाहिए न! मैंने पुनः आदेश बिंदु वाली बात बता दी. हिंदी में ”पुनः आदेश बिंदु” न समझ में आया हो तो इसे इंग्लिश में ”रिऑर्डर प्वाइंट” कहते हैं. इसका मतलब है, कि किसी भी चीज को इस तरह खत्म न होने दो, कि उसके बिना काम रुक जाए और तुरंत मंगानी पड़े. आशा है आप समझ गई होंगी!”

”बहू, हमें माफ करना, पर सच पूछो तो हम अभी तक समझी नहीं नहीं हैं.”

”कोई बात नहीं, मैं समझा देती हूं. मेरी ममी मसाले-चीनी-गेहूं आदि जब डिब्बे में भरती हैं, तो थोड़ा-सा पैकिंग में बचा लेती हैं और लिस्ट में लिख भी देती हैं, किसी कारण वह चीज नहीं भी आ पाए. तो बची हुई चीज से 1-2 बार का काम तो चल ही जाता है. इससे भी आगे कहूं, अगर हम खेती करते हैं तो कुछ अच्छे बीज बचाकर रखने चाहिएं, व्यापार करते हैं तो कुछ धनराशि बचाकर रखनी चाहिए. आपको याद होगा मनु ने बीज रूप में सृष्टि को बचाया था, तभी यह सृष्टि आगे चल पा रही है. बाद में हमें इस सिद्धांत को एम.बी.ए में ”पुनः आदेश बिंदु” यानी ”रिऑर्डर प्वाइंट” के रूप में पढ़ाया गया था. बस इतनी-सी बात कही थी मैंने.” शालू ने कहा.

”इस पर तो सभी महिलाएं बहू की बलैयां लेने लग गई थीं.” सासू मां ने शालू की बलैयां लेते हुए कहा.

विनम्रता से सिर झुकाकर शालू सबकी हंसी-खुशी से खुश होती रही. आगे भी उसका अपनी शिक्षा व दोनों कुलों की मान-मर्यादा बनाए रखने का संकल्प और सुदृढ़ हो गया था.

चलते-चलते
बच्चों, मित्रों और स्नेहियों के शुभकामना संदेशों ने हमारे परिणय दिवस की याद दिलाकर महफिल सजाई है-
”दिल से दिल की महफिल सजाई आपने, मुबारक हो,
हमको शुभकामनाएं देने वालों को भी, यह दिन बहुत-बहुत मुबारक हो.”
निकट भविष्य में बहुत-से परिणय दिवस आने वाले हैं. आज के कामेंट्स की चुनिंदा काव्यमय शुभकामनाएं 29 नवंबर के परिणय दिवस विशेष सदाबहार कैलेंडर में प्रकाशित की जाएंगी. आप सबको छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एवं कोटिशः बधाइयां.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “यादों के झरोखे से- 28

  • लीला तिवानी

    सभी पाठकगण, ब्लॉगर्सवृंद, मित्रों, स्नेहियों, देशवासियों को छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एवं कोटिशः बधाइयां.

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